देश में कई और भी जरूरी मुद्दे, भारत और इंडिया विवाद पर चीन को लगी मिर्ची; G-20 पर देने लगा ‘ज्ञान’…
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दो दिनों तक चलने वाले जी-20 सम्मेलन से ठीक पहले देश में इंडिया और भारत के नाम को लेकर विवाद छिड़ गया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जी-20 के लिए आयोजित डिनर को लेकर भेजे गए निमंत्रण पर इंडिया की बजाए भारत का जिक्र किया गया।
इसके बाद, मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक चर्चाएं होने लगीं कि इंडिया अब भारत के नाम से ही जाना जाएगा। नाम को लेकर चल रही बहस के बीच पड़ोसी देश चीन को मिर्ची लगी है।
चीनी सरकार के लिए प्रोपेगैंडा चलाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें कहा है कि भारत और इंडिया मुद्दे के अलावा भी देश में कई अन्य अहम मुद्दे हैं।
आर्टिकल की शुरुआत में कहा गया है कि ऐसे समय में जब वैश्विक ध्यान आगामी जी20 शिखर सम्मेलन पर केंद्रित है, नई दिल्ली दुनिया को क्या व्यक्त करना चाहती है? जब दिसंबर 2022 में भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभाली थी, तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत की सालभर की जी-20 अध्यक्षता समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और ऐक्शन-ओरिएंटेड होगी।
स्पष्ट रूप से, भारत अपनी जी-20 अध्यक्षता का इस्तेमाल देश के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ाने के लिए करना चाहता है। अपने इस लेख में चीन ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था का लोहा माना है।
उसने कहा है, ”भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। देश ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, और जल्द ही भविष्य में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है।”
ग्लोबल टाइम्स ने अपने आर्टिकल में भारत का लोहा माना है। उसने लिखा है कि निस्संदेह, भारत ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि भारत अपनी जी-20 अध्यक्षता के माध्यम से बाहरी दुनिया को क्या संदेश देना चाहता है, लेकिन अधिक लोग इस बात पर ध्यान देंगे कि भारत क्या कहना चाहता है।
उम्मीद है कि भारत बढ़ते वैश्विक ध्यान का अच्छा इस्तेमाल कर सकता है और इस प्रभाव को विकास की प्रेरक शक्ति में बदल सकता है।
कुछ दिनों से चल रही भारत और इंडिया के नामों पर बहस का जिक्र करते हुए आर्टिकल में कहा गया है, ”मोदी की पार्टी के कुछ नेताओं ने देश को इंडिया के बजाय भारत कहने की मांग की है, क्योंकि उनका तर्क है कि इंडिया नाम ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा पेश किया गया था और गुलामी का प्रतीक है। इसलिए, नाम में बदलाव किया गया है। यह औपनिवेशिक युग के नामों को खत्म करने के प्रयास को दर्शाता है।
‘नाम सबसे महत्वपूर्ण नहीं, जो चाहें वह कहें’
चीन का कहना है कि भारतीय लोगों को अपने देश को जो चाहें कहने की आजादी है। हालांकि, नाम सबसे महत्वपूर्ण चीज नहीं है।
जरूरी बात यह है कि क्या भारत अपनी आर्थिक व्यवस्था में व्यापक सुधार कर सकता है? यह भारत की आर्थिक उन्नति और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के प्रभाव को बेहतर बनाने की कुंजी है।
क्रांतिकारी सुधार के बिना भारत क्रांतिकारी विकास हासिल नहीं कर सकता। 1991 के बाद से मोदी सरकार भारत में आर्थिक सुधारों के मामले में सबसे महत्वाकांक्षी सरकारों में से एक रही है, जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए बड़े सुधार शुरू किए थे। दुर्भाग्य से, भारत तेजी से व्यापार संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहा है। इसके कुछ पिछले सुधार उपाय भी रुक गए हैं।
भारत को जी-20 सम्मेलन का ऐसे करना चाहिए इस्तेमाल
कुछ साल पहले चीनी कंपनियों पर हुई कार्रवाई को लेकर भी ड्रैगन को मिर्ची लगी है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि कुछ चीनी कंपनियों पर भारत की हालिया सख्त कार्रवाई देश में बढ़ते राष्ट्रवाद और लोकलुभावनवाद से जुड़ी है।
यह स्थिति अनिवार्य रूप से भारत में निवेशकों के विश्वास को कम कर देगी। आर्टिकल में आगे कहा गया कि भारत ने दिसंबर 2022 में इंडोनेशिया से जी20 की अध्यक्षता ग्रहण की और आने वाले दिनों में भारत पहली बार जी20 नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा।
अब, भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार करने, अपने खुलेपन का विस्तार करने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने और विदेशी निवेशकों के लिए एक उचित व्यापार वातावरण प्रदान करने के लिए अपने दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करने के लिए जी20 की अध्यक्षता का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, इन उपायों को धीरे-धीरे लागू करना चाहिए। ये सब देश का नाम बदलने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।