विदेश

क्या है खालिस्तान मूवमेंट? जिसकी आग में झुलस रहा भारत-कनाडा का 75 साल पुराना मजबूत रिश्ता…

भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास आ गई है और तेजी से दोनों देशों के बीच रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जा रही है।

इसके पीछे खालिस्तान आंदोलन और खालिस्तान समर्थक रहे हैं। हाल के दिनों में जहां भारत के खिलाफ कनाडा की भूमि पर खालिस्तानियों की साजिशें उजागर हुई हैं, वहीं कनाडा ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ हो सकता है।

10 सलाख के इनामी और खालिस्तानी टाइगर फोर्स (KTF) के आतंकी निज्जर की इसी साल जून में हत्या कर दी गई थी।

दरअसल, ये लोग (खालिस्तान समर्थक) खालिस्तान नाम के एक अलग देश की मांग कर रहे हैं। कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में आकर बसे सिख प्रवासी इससे सहानुभूति रखते हैं।

इन लोगों की मांग है कि मौजूदा पंजाब राज्य और आसपास के हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को मिलाकर एक स्वतंत्र खालिस्तान देश बनाया जाय। इसमें पाकिस्तान स्थित पंजाब को भी शामिल करने की बात कही जाती रही है। इसकी प्रस्तावित राजधानी लाहौर है।

खालिस्तान का मतलब:
खालिस्तान का मतलब खालसा की सरजमीन (The Land of Khalsa) होता है। यानी खालसा (सिखों ) का प्रदेश। स्पष्ट है कि खालिस्तान का अभिप्राय सिखों के लिए अलग देश की मांग से है। कहा जाता है कि 1940 में सबसे पहले खालिस्तान शब्द का प्रयोग हुआ था।

हालांकि, इससे भी पहले, साल 1929 में मोतीलाल नेहरू के पूर्ण स्वराज की मांग पर शिरोमणि अकाली दल के तारा सिंह ने सिखों के लिए अलग देश बनाने की मांग की थी। 

आजादी और देश विभाजन के बाद मांग ने पकड़ी रफ्तार
1947 में जब भारत आजाद हुआ और देश का विभाजन हुआ तो मुस्लिमों के बाद सिखों को सबसे ज्यादा तकलीफ हुई। सिख भारत और पाकिस्तान (दोनों) के पंजाब में बसते थे।

विभाजन के कारण सिखों की पारंपरिक भूमि पाकिस्तान में चली गई, इससे उनमें गहरा असंतोष था। 1955 में सिख बहुल राजनीतिक दल अकाली दल ने भाषा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन के लिए आंदोलन शुरू किया था।

अकाली दल राज्य को पंजाबी और गैर-पंजाबी भाषी क्षेत्रों में विभाजित करने की मांग करता था। जब ये मांग बढ़ने लगी तो साल 1966 में इंदिरा गांधी ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांटते हुए पंजाब, हरियाणा को राज्य और चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया। अकाली दल ने तब केंद्र सरकार से रक्षा, विदेश, संचार और मुद्रा छोड़कर सारे अधिकार पंजाब सरकार को देकर स्वायत्त करने की भी मांग रखी थी, जिसे इंदिरा ने नकार दिया था।

भिंडरावाला की एंट्री और ऑपरेशन ब्लू स्टार
1980 के दशक में एक बार फिर से खालिस्तान आंदोलन ने जोर पकड़ा। उस वक्त दमदमी टकसाल का मुखिया जरनैल सिंह भिडरावाला ने उस आंदोलन को हवा दी थी। इसी बीच , 1981 में पंजाब केसरी अखबार संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई।

फिर  1983 में खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की हत्या कर दी थी। इस घटना को देखते हुए और पंजाब में बिगड़ती कानून-व्यवस्था के मद्देनजर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

इससे नाराज अलगाववादियों का आंदोलन और उग्र हो गया। भिंडरावाले की अगुवाई में खालिस्तान समर्थकों ने भारी हथियारों को जमाकर स्वर्ण मंदिर में शरण ले ली।

इन उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए 1 जून 1984 को केंद्र सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलवाया था। इसमें सेना के 83 जवानों और 492 नागरिकों की मौत हो गई थी।

इस ऑपरेशन में भिंडरावाला मारा गया और स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कर लिया गया, हालाँकि इससे दुनिया भर में सिख समुदाय के लोग भावनात्मक रूप से अत्यधिक आहत हुए। ऑपरेशन ब्लू स्टार ने दुनिया भर में इंदिरा गांधी को सिख विरोधी के तौर पर स्थापित कर दिया और यही वजह रही कि उनके ही दो सिख अंगरक्षकों ने पांच महीने के अंदर उनकी हत्या कर दी थी।

विदेशी सरजमीं पर जिंदा रहा आंदोलन
1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार और उससे पहले ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1968 और 1988) के बाद खालिस्तान आंदोलन को दबा दिया गया था लेकिन जो सिख प्रवासी कनाडा, ब्रिटेन अमेरिका और आस्ट्रेलिया में थे, वे इसे ऐक्टिव बनाए रखने में सफल रहे। कनाडा में फिर से वही आंदोलन जोर पकड़ने लगा है।

आंदोलन की वर्तमान स्थिति क्या है?
वर्तमान समय में भारत में खालिस्तान आंदोलन मृतप्राय है। पंजाब की शहरी या स्थानीय आबादी में इसका प्रभाव नगण्य है लेकिन इस आंदोलन को कनाडा, ब्रिटेन या अमेरिका में रहने वाले सिखों से ईंधन और वैचारिक समर्थन मिलता रहा है।

NRI सिख इस आंदोलन के लिए पैसा और वैचारिक समर्थन दे रहे हैं। पाकिस्तान की आईएसआई भी खालिस्तान आंदोलन को फिर से उग्र करने के लिए धन और बल लगा रही है। कनाडा के कुछ शहरों (ब्रिटिश कोलंबिया और सरे) में यह आंदोलन तेज हो रहा है।

News Desk

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!