सेना के जवान का कोर्ट मार्शल, 10 साल की सजा; पाकिस्तानी जासूस को देता था गुप्त सूचनाएं…
सेना कोर्ट मार्शल ने गुप्त जानकारियां पाकिस्तान को देने वाले दोषी सैनिक को 10 साल से अधिक की जेल की सजा सुनाई है।
यह जवान उत्तरी सीमाओं पर सैन्य गतिविधियों के बारे में नई दिल्ली में पाकिस्तान दूतावास के कर्मचारी को सूचनाएं देते हुए पकड़ा गया था।
इसे देखते हुए ही इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है। रक्षा अधिकारियों ने बताया कि महिला अधिकारी की अध्यक्षता में कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया पूरी हुई।
दोषी सैनिक को 10 साल और 10 महीने की जेल की सजा सुनाई गई, जो पाकिस्तानी जासूस को गुप्त सूचना भेजते हुए पकड़ा गया था।
सैनिक दिल्ली में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के उच्चायोग में कार्यरत पाकिस्तानी नागरिक आबिद हुसैन उर्फ नाइक आबिद के संपर्क में था।
सैनिक की ओर से दुश्मन की जासूसी एजेंसी को मुहैया कराए गए दस्तावेजों की लिस्ट सामने आई है। इसमें उस फॉर्मेशन की गार्ड ड्यूटी सूची के साथ ही उसकी अपनी फॉर्मेशन की गतिविधियां भी शामिल थीं, जहां वह तैनात था।
जवान ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान वाहनों की आवाजाही की लिस्ट के साथ-साथ फॉर्मेशन के वाहनों से जुड़ी जानकारियां देने का कोशिश की।
छोटी-मोटी जानकारियों तक रही सैनिक की पहुंच
रिपोर्ट के मुताबिक, दोषी सैनिक को केवल छोटी-मोटी जानकारियां ही उपलब्ध हो पाती थीं। कोर्ट मार्शल के दौरान कहा गया कि सेना ऐसी हरकतों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करती।
इस तरह के मामले में दोषियों को उचित सजा दी गई है। बता दें कि सैनिक को कोर्ट मार्शल की ओर से दी गई सजा सीनियर अधिकारियों द्वारा पुष्टि के अधीन होगी।
दूसरी ओर, मानहानि मामले में सेना के अधिकारी को 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का अदालत ने फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार में शामिल होने संबंधी खुलासे के कारण भारतीय सेना के अधिकारी की जो बदनामी हुई, उसे लेकर उन्हें 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का फैसला किया है।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया द्वारा दायर मुकदमे का फैसला करते हुए शुक्रवार को निर्देश दिया। इसमें कहा गया कि इस राशि का भुगतान समाचार पोर्टल तहलका डॉट कॉम, इसकी मालिक कंपनी मेसर्स बफेलो कम्युनिकेशंस, इसके मालिक तरुण तेजपाल और दो पत्रकारों-अनिरुद्ध बहल व मैथ्यू सैमुअल की ओर से किया जाएगा।
अदालत ने कहा कि किसी ईमानदार सैन्य अधिकारी की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचाने का इससे बड़ा मामला नहीं हो सकता। प्रकाशन के 23 वर्षों के बाद माफी मांगना न सिर्फ अपर्याप्त बल्कि बेतुका भी है।