छत्तीसगढ़

रायपुर : राज्य सरकार छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने कर रही है काम: मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया…

नगरीय प्रशासन मंत्री छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सातवें प्रातीय सम्मेलन में हुए शामिल

नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने कहा कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर क्षेत्रों में हम सबका प्रारंभिक परिचय अपने माता की बोली भाखा छत्तीसगढी व अन्य स्थानीय बोली-भाषा से शुरू हुई, उसके बाद दूसरी भाषा से परिचय हुआ। राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए राजभाषा आयोग की स्थापना की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व मंे राज्य सरकार प्रदेश के खान-पान, रहन-सहन, पहनावा व तीज त्यौहारों के संरक्षण एवं सवंर्धन के  बेहतर काम कर रही है। राज्य सरकार ने विलुप्त हो रही संस्कृति एवं परंपरा को पुर्नस्थापित करने का काम किया। छत्तीसगढ़िया लोगों को सम्मान दिलाया है। आयोग का उद्देश्य सार्थक हो रहा है। मंत्री डॉ. डहरिया आज राजभाषा आयोग द्वारा राजधानी रायपुर स्थित एक निजी होटल में आयोजित दो दिवसीय सातवें प्रातीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे।
मंत्री डॉ. डहरिया ने कंहा कि हमारी सरकार ने छत्त्तीसगढ़ महतारी का छायाचित्र तैयार कर छत्तीसगढ़ को सम्मान दिलाने का काम किया है, वहीं छत्तीसगढ़ के राज्यगीत, राजकीय गमछा ने प्रदेश और देश में एक अलग स्थान बनाया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभा की कमी नहीं है, ऐसे प्रतिभाओं को अवसर मिलने से राज्य एक अलग पहचान बनेगी।
संसदीय सचिव कुंवर सिंह निषाद ने कहा कि देश में लगभग 1652 प्रकार की मातृभाषा प्रकाश मेें है। अपने-अपने राज्य की अलग-अलग बोली-भाषा है। सभी को अपने मातृभाषा पर गर्व होता है। हमारी छत्तीसगढ़ी बोली-भाखा गुरतुर और मिठास है। हम सबको अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए।

निषाद ने लोगों को अपने दैनिक जीवन में छत्तीसगढी भाषा के उपयोग पर बल दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों और हाना के जरिए पुरखों की समृद्ध मातृभाषा छत्तीसगढ़ी बोली का महत्व बताया।
प्रांतीय सम्मेलन को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डॉ. अनिल भतपहरी ने  सम्बोधित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की दिशा में प्रयास जारी है। छत्तीसगढ़ी भाषा का मानकी करण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा पर छत्तीसगढ़ी को राज्य के पहली से पांचवी तक स्कूलों में पाठ्यक्रम में शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। बस्तर और सरगुजा सभांग में भी स्थानीय बोलियों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की कार्यवाही जारी है।
मंत्री डॉ. डहरिया ने इस दौरान साहित्यकार एवं भाषाविद् डॉ. सुरेश शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘बाबा गुरू घासीदास चरित्रम्‘, बलदेव साहू द्वारा लिखित ‘मेचका राजा-मछली रानी‘, श्रीमती उर्मिला शुक्ला द्वार लिखित पुस्तक ‘देहरी‘, श्री भुवन दास कोसरिया द्वारा लिखित ‘सतनाम वृतांत‘, प्रेमदास टण्डन द्वारा लिखित पुस्तक ‘सुन भैरा‘, डॉ. मणिमनेश्वर ध्येय द्वारा लिखित ‘अछूत अभागन‘, बोधन राम निषाद द्वारा लिखित पुस्तक ‘आलहा छंद जीवनी‘, कन्हैया लाल बारले द्वारा लिखित ‘दू गज जमीन‘, डॉ. नीलकंठ देवांगन द्वारा लिखित ‘सोनहा भुइंया‘, बद्री पारकर द्वारा लिखित ‘बिसरे दिन के सुरता‘, चोवाराम द्वारा लिखित ‘मैं गांव के गुढ़ी अव‘, तारिका वैष्णव द्वारा लिखित ‘बनगे तोर बिगड़गे‘, कृष्ण कुमार साहू द्वारा लिखित ‘छत्तीसगढ़ दर्शन‘, रंजीता चक्रवती द्वारा लिखित ‘लड़की के सपना‘, वंदना त्रिवेदी द्वारा लिखित छत्तीसगढ़ी में ‘रामायण के सातों काण्ड‘, बालकृष्ण गुप्ता एवं पी.सी. लाल द्वारा लिखित ‘गुरू ज्ञान‘ और डॉ. अनिल भतपहरी द्वारा लिखित ‘सुकवा उगे न मदरश झरे‘ पुस्तक का विमोचन किया।
इस मौके पर छत्रपति शिवाजी महाविद्यालय के कुलपति डॉ. केसरी लाल वर्मा, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं भाषाविद् परदेशीराम वर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार और जिला समन्वयक उपस्थित थे।

News Desk

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