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जिनवाणी सुनेंगे तो सुधरेंगे, सुधरेंगे तो मानव जन्म सार्थक होगा – लयस्मिता श्री जी म.सा.

हमे उन सभी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए जिसकी कोई आवश्यकता न हो - भव्योदया श्री जी म.सा.

धमतरी। आज के प्रवचन के माध्यम से परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म.सा. के कहा कि जिनवाणी सुनेंगे तो सुधरेंगे। सुधरेंगे तो मानव जन्म सार्थक होगा। ये आगमवाणी हमे जगा रही है। हमे भी अपने अंतर्मन में जागृति लाना है। सातवे आगम उपासक दशांग सूत्र के माध्यम से श्रावक धर्म के बारे बताया गया है। कहा गया है कि श्रावक को कभी भी बिना प्रत्याख्यान के नही रहना चाहिए, क्योंकि पता नही कब मृत्यु आ जाए। मृत्यु का कोई समय नहीं है। हमे हमेशा उसके लिए तैयार रहना चाहिए। इसीलिए हमेशा कुछ न कुछ प्रत्याख्यान हमेशा होना चाहिए। आगमवानी के अनुसार जौ जितना भी श्रावक धर्म हमारे अंदर नही है फिर भी दूसरो को बोलने से हम नही चूकते। जबकि हमे पहले स्वयं को देखना चाहिए। एक सच्चे श्रावक श्राविका की पहचान है की वो प्रतिदिन कम से कम नवकारसी का प्रत्याख्यान अवश्य करे। हम जितना तामसिक आहार करते है उतनी ही अधिक गुस्सा आता है। अत: हमे हमेशा सात्विक आहार करना चाहिए ताकि मन भी शांत रहे। हमारा आहार, विचार और व्यवहार जितना शुद्ध होता है हम उतने अच्छे श्रावक हो सकते है। जिस दिन हम सच्चे जैनी बन जायेंगे उस दिन हमारे अंदर जिनवाणी बड़ी सरलता से आ जायेगी। परमात्मा ने कहा है की हमे दूसरो से नही बल्कि स्वयं से उम्मीद रखना चाहिए। क्योंकि आत्मकल्याण स्वयं के पुरुषार्थ से होता है। जिस प्रकार जिसके पास अधिक धन संपत्ति हो उसे धनवान, अधिक बुद्धि वाले को बुद्धिमान कहा जाता है उसी प्रकार 10श्रावको को शास्त्रीय भाषा में गाथापति कहा जाता है। क्योंकि सभी श्रावको की संपदा, संपत्ति, आचार ,विचार, कर्म, व्रत, नियम, प्रत्याख्यान, एक जैसे थे। सभी में एक जैसे समानता थी।हम सभी यहां आगमवाणी श्रवण कर आनंद लेने और आनंद श्रावक जैसा बनने आए है।


परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि सामायिक समभावों की साधना होती है। जिस प्रकार तराजू 2 प्रकार का होता है एक सब्जी वाले का तराजू और एक जौहरी का तराजू। सब्जी वाले का तराजू कुछ सम विषम होता है अर्थात उसमे कुछ अंतर हो सकता है, जबकि जौहरी का तराजू हमेशा सम ही रहता है। हमे भी जौहरी के दुकान के तराजू की तरह अपने जीवन को बनाना है। है परिस्थिति में हमे सम रहना है। सम से ही समता की प्राप्ति हो सकती है।जीवन में कर्म रूपी शत्रु हमेशा आ रहे है किंतु हम सजग नही है। सामायिक के माध्यम से समता भाव लाकर सजग हो सकते है। सातवे प्रकार की सामायिक है परिज्ञा- अर्थात पाप के परिहार से समस्त वस्तुओं का बोध प्राप्त कर लेना परिज्ञा कहलाता है। आंठवे नंबर की सामायिक है प्रत्याख्यान अर्थात त्याग करने योग्य वस्तुओं का त्याग करना। प्रत्याख्यान के माध्यम से हमे उन सभी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए जिसकी कोई आवश्यकता न हो।
आज के प्रवचन में भंवरलाल छाजेड़, लूणकरण गोलछा, जीवनलाल लोढ़ा, भंवरलाल बैद पारसमल गोलछा, मोहनलाल गोलछा, मोतीलाल चोपड़ा, निलेश पारख, संजय छाजेड़, शिशिर सेठिया, कुशल चोपड़ा, श्रीमति किरण सेठिया, श्रीमती किरण की गोलछा, श्रीमती राजकुमारी पारख, श्रीमती दीपिका गोलछा, श्रीमती संगीता गोलछा, श्रीमती सरिता लूनिया सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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