हमारा तन मन केवल परमात्मा के लिए होना चाहिए-विशुद्ध सागर जी म.सा.
चातुर्मास के तहत पार्श्वनाथ जिनालय में जारी है प्रवचन
परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज से हमे प्रभु महावीर की अंतिम देशना का श्रवण उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से करना है। प्रभु महावीर ने जनकल्याण के लिए अपने अंतिम समय में लगातार सोलह प्रहार तक देशना दी थी। जो गणधरों द्वारा लिखी गई। जिस देशना को अंतः हृदय में उतारने से आत्म कल्याण निश्चित हो जाता है। जब हम प्रभु के सामने होते है तब केवल प्रभु के बारे में ही सोचना चाहिए। हमारा तन मन केवल परमात्मा के लिए होना चाहिए। ज्ञानी भगवंत कहते है जो स्वयं को संसार में सबसे अधम समझता है उसका कल्याण निश्चित है क्योंकि ऐसा व्यक्ति स्वयं के दोषों को देखने की और उसे सरलता से स्वीकार करने की क्षमता और योग्यता रखता है। आज से हमे जिनवाणी के माध्यम से अज्ञान को जानने का और उसे दूर करने का प्रयास करना है। ज्ञानी भगवंत कहते है हमे द्रव्य, गुण और पर्याय को जानना चाहिए। क्योंकि हम द्रव्य के पर्याय को बदल सकते है लेकिन गुण को कभी नहीं बदला जा सकता। हम वास्तव में जिसे ज्ञान समझते है वह संसार की दृष्टि से ज्ञान हो सकता है लेकिन आत्मा की दृष्टि से वह अज्ञान है।
परमात्मा की तीन अवस्था होती है। पहला पिंडस्थ अवस्था ( बाल्यावस्था),दूसरा – पदस्थ,अवस्था (राज्यवस्था),तीसरा – रूपस्थ अवस्था( निर्वाण अवस्था),जहां फल प्राप्ति के लिए प्रयत्न पूर्वक पुरुषार्थ की भावना होती है, उसे प्रयास कहते है।गुरु से कुछ ग्रहण करने के लिए पहले अपने अंतर्मन को खाली करना पड़ता है। अर्थात जब अंतर्मन से अहम निकल जाता है। तब ही हम कुछ ग्रहण कर पाते है। दुख कभी भी सुख की जननी नहीं हो सकती। और हम सुखी होने के लिए दूसरो को दुख देते है पाप करते है। योग्य होने के लिए पहले स्वयं को अयोग्य मानना पड़ता है।