जानते है क्रोध, मान, माया व लोभ चारो बुरे लेकिन फिर भी यह कर्म हम करते है – परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.
इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत रोजाना प्रवचन है जारी
चातुर्मास के तहत जैन समाजजनों द्वारा तप-तपस्याओं का दौर है जारी
धमतरी। इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत रोजाना प्रवचन जारी है। आज सुबह प्रवचन के तहत परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने कहा कि आचार्य भंगवतों के नाम स्मरण से मन आंनदित व उत्साहित हो जाता है। उनके नाम स्मरण से मै आत्मा हुँ इसकी पुन: जागृति आ जाती है। पुन: हमे एक और अवसर जीवन का मिला है इस अवसर में हम जानने और जीने का प्रयास कर रहे है। हम जानते है कि क्रोध बुरा है पर क्रोध कर ही लेते है। मान करना बुरा है पर मान करते ही है। माया तो करनी ही नहीं चाहिए लेकिन कब कैसे हो जाती है हमे पता ही नहीं चलता। लोग क्रोध, मान व माया तीनों के सेंटर में है। लेकिन इन तीनों का बाप लोभ है हर किसी को लोभ है। अच्छे से जानते है यह बुरा है लेकिन यह कर्म करते समय याद नहीं आता। हम जानते है धरातल पर है पर हमे जीना आसमान में है। धरातल और आसमान के बीच गेप है यह दर्शन मान्यता है अर्थात् जानने और जीने के बीच जचाना है। इसलिए हमारी जीवन जीने की प्रक्रिया जानना जचाना फिर जीना होना चाहिए। लेकिन हम जचाने पर ध्यान नहीं देते, सिर्फ जानना और जीना चाहते है। इसलिए जीवन के मुख्य प्रक्रिया से दूर रहते है।
कुछ दिन स्वयं व कर्मो को जांचने के प्रयास करते है लेकिन फिल भुल जाते है। तीन चींजे जीवन में आवश्यक है सम्यक, दर्शन व ज्ञान चरित्रानी। पहले दर्शन मान्यता अर्थात् जांच है पहले जांचना चाहिए। जो व्यक्ति जांचने व जचांने से पिछे हटता है वह व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। मंजिल पाना है तो सीढिय़ां चढऩी पड़ेगी और यदि सीढियों की चिंता करेंगे तो मंजिल कैसे मिलेगी? प्रवचन सुनने बड़ी संख्या में रोजाना जैन समाजजन उपस्थित रहते है वहीं चातुर्मास के तहत जैन समाजजनों द्वारा तप-तपस्याओं का दौर भी जारी है।