भगवान महावीर के हृदय में संसार के सभी जीवों के प्रति करुणा भाव है – विशुद्ध सागर जी म.सा.
महावीर का जन्म कल्पसूत्र के माध्यम से कराया गया श्रवण
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज पर्युषण पर्व का पांचवा दिन है। आज कल्पसुत्र के माध्यम से 24वे तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया जाता है। भगवान महावीर का जन्म चैत्र सुदी तेरस को सिद्धार्थ राजा की भार्या त्रिसला महारानी की रत्नकुक्षि से कुंडलपुर नगर में हुआ था। भगवान जब माता के गर्भ में थे उस समय वो माता को कष्ट न हो इसलिए हलचल बंद कर देते है जिसके कारण माता को दुखी होती है। और विचार करती है मैं कैसी अभागिनी हू शायद मेरा गर्भ किसी ने हरण कर लिया है। तब भगवान विचार करते है मैने तो माता के सुख के लिए हलन चलन बंद किया था किंतु ये तो माता के दुख का कारण बन गया। उस समय भगवान प्रतिज्ञा करते है की मैं माता पिता के जीवित रहते दीक्षा नही लूंगा। भगवान जब से माता के गर्भ में आए तब से राजा को राज्य में सभी प्रकार की वृद्धि दिखाई दे रही थी। इसलिए उनका जन्मोत्सव के समय वर्धमान नाम रखा गया। भगवान जन्म से ही तीन ज्ञान मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के धारी होते है। एक बार भगवान जब बाल्यक्रीड़ा कर रहे थे। उस समय देवलोक में इंद्र भगवान के अद्वितीय बाल की प्रशंसा करते है जो एक देव को अच्छा नहीं लगा वो कहता है धरती मे हुए एक मानव का बाल क्या हमसे अधिक हो सकता है मैं ऐसा नहीं मानता। और वो असंयमी देव धरती पर आकर भगवान महावीर के साथ खेलने लगे। खेल में हारकर वो देव परमात्मा को अपने कंधे पर बैठा कर दौड़ लगाता है। और अपना शरीर बढ़ाने लगता है। भगवान के सभी मित्र यह दृश्य देखकर भाग जाते है लेकिन परमात्मा बिल्कुल भी नही घबराते। और देखते ही देखते उस देव का शरीर 7ताड़ जितना हो गया। उस समय वर्धमान कुमार उस देव के सिर पर एक मुष्ठी का प्रहार करते है। और वह देव धराशायी हो गया। उस समय देवलोक से इंद्र आते है और वर्धमान कुमार से उस देव का अपराध क्षमा कराते है। और उसी समय वर्धमान कुमार का नाम इंद्र देव के द्वारा महावीर रखा जाता है।
भगवान का विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ संपूर्ण होता हैं भगवान महावीर माता पिता के देवलोक गमन के बाद बड़े भाई नंदिवर्धन से दीक्षा की आज्ञा लेने जाते है उस समय नंदिवर्धन कहते है अभी भी माता पिता के जाने का दुख भी कम नहीं हुआ और तुम दीक्षा की बात करके और दुखी कर रहे हो। तब भगवान महावीर भाई की आज्ञा मानकर 2 वर्ष और गृहस्थ में रहते है। फिर 30 वर्ष की आयु में भगवान का दीक्षा कल्याणक हो जाता है। साढ़े बारह वर्ष भगवान छद्मस्त अवस्था में रहते है। इस अवधि में एक ही रात्रि में संगमदेव द्वारा भगवान को 20 उपसर्ग दिए गए। फिर भी भगवान थोड़ा भी चलायमान नही हुए। भयंकर विषधर चंडकौशिक सर्प द्वारा परमात्मा के पैर में डंक मारा गया। किंतु परमात्मा के पैरो से खून के स्थान पर दूध निकलने लगता है। क्योंकि परमात्मा के हृदय में संसार के सभी जीवों के प्रति करुणा भाव होता है। परमात्मा चंदनबाला के हाथो से उड़द के बाकुले बहरकर तेरह अभिग्रह पूर्ण कराकर उसके पांच माह पच्चीस दिन की तपस्या पूर्ण कराते है। परमात्मा के गौतम स्वामी जैसे विनयवान शिष्य सहित कुल ग्यारह गणधर थे। गौतम स्वामी जी द्वारा भगवान महावीर से मात्र 3 प्रश्न पूछा गया और उसके माध्यम से द्वादशांगी की रचना कर दी गई। इतने विद्वान परमात्मा के शिष्य थे। भगवान महावीर से गौतम स्वामी जी ने 36000 प्रश्न पूछे थे जो भगवती सूत्र में है। ऐसे परमात्मा का कार्तिक बदी अमावस्या के दिन परमात्मा का निर्वाण हो गया। आज पर्युषण पर्व के पांचवे दिन परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. के मुखारबिंद से भगवान महावीर का जन्म कल्पसूत्र के माध्यम से श्रवण कराया गया। पूरे संघ में आज अत्यंत हर्षोल्लास रहा। आज इस शुभ अवसर पर पूरे संघ भगवान के जन्मकल्याणक महोत्सव जैसा माहौल रहा।