संकल्प के बिना साधना नही होती और साधना के बिना सिद्धि नही मिल सकती – लयस्मिता श्री जी म.सा.
अशुद्ध विधि होने पर सामायिक में आनंद की प्राप्ति नही हो सकती- भव्योदया श्री जी म.सा.
धमतरी। चातुर्मास के तहत पाश्र्वनाथ जिनालय में प्रवचन जारी है। आज परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म.सा. ने कहा कि ज्ञान की याचना होने पर भगवान ने जो फरमाया वह आगम वाणी है। जब आठ माह धरती तपती है, और तपकर अपनी तपन आकाश तक पहुंचाता है तब सावन का महीना आता है और अमृततुल्य वर्षा होती है, और उस वर्षा के जल से धरती की तपन शांत होती है। ठीक वैसे ही एक श्रावक चातुर्मास काल में जिनवाणी रूपी अमृत वर्षा से अपने आत्मा की तपन को दूर कर सकता है। हमारा आगम प्रमाणित है क्योंकि भगवान महावीर ने जैसा कहा गौतम स्वामी ने वैसा ही लिखा इसलिए यह आगम प्रमाणित है। परंपरागत वाणी में हम विनय करके, प्रदक्षिणा करके वंदन करके परमात्मा की वाणी को सुनते है। वृतांत वाणी में हम कथा के माध्यम से परमात्मा की वाणी को सुनते है। परमात्मा की वाणी को सुनने की पात्रता भी श्रावको में होनी चाहिए। पात्रता चार प्रकार की होती है। अंतर्मुखी- हम जो देखे , सुने वो सब अपने अंतर्मन में प्रवेश होना चाहिए, इसे अंतर्मुखी कहते है । चाहे किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थिति आ जाए हमारी भीतर की समाधि खंडित नहीं होनी चाहिए। मन की शांति- खराब निमित्त मिलने पर भी मन अशांत नही होना चाहिए। जब मन शांत और स्थिर होता है तो सबकुछ समझ आता है। संयम – पांचों इंद्रियों पर हमारा संयम होना चाहिए। आचार शुद्धि – हमारा आचार, विचार और व्यवहार शुद्ध होना चाहिए। जिसके जीवन में ये चार पात्रता होती है वही जिनवाणी को सुनकर अपने जीवन में परिवर्तन ला सकता है। जिस प्रकार एक शेरनी का दूध स्वर्ण पात्र में ही टिकता है उसी प्रकार जिनवाणी श्रवण करने से परिवर्तन भी पात्र लोगो में ही आता है। जिनवाणी के श्रवण से पुण्य का पोषण होता है, पापो का शोषण होता है और कर्मों का शोधन होता है। आगम वाणी हमे स्वदर्शन करना सिखाता है। ये पात्रता आनंद श्रावक ने अपने अंदर पैदा की थी। संकल्प के बिना साधना नही होती और साधना के बिना सिद्धि नही मिल सकती। धर्म फ्री में होता है किंतु हम लक्ष्मी का सदुपयोग करने और पुण्य का पोषण करने के लिए धन लगाते है।
परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि अगर हम घर में सामायिक करे तो घर का वातावरण शांत होना चाहिए। अर्थात हमे सदा शुद्ध वातावरण में सामायिक करना चाहिए। रिद्धिवान लोगो को भी पूरे ठाठ-बांठ के साथ उपाश्रय में आकर सामायिक करना चाहिए। ताकि इससे दूसरो को भी प्रेरणा मिले। सामायिक करते समय हमारी विधि शुद्ध होनी चाहिए। अशुद्ध विधि होने पर आनंद की प्राप्ति नही हो सकती। तीसरे प्रकार की सामायिक है सम्यकवाद – इसका अर्थ है सत्य कहना। जैसे राजा हरिश्चंद्र ने विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का साथ नही छोड़ा उसी प्रकार हम भी हमेशा सत्य कहना चाहिए। जैसे डॉक्टर पहले तन की सफाई करता है फिर दवाई देता है ताकि सही स्वास्थ्य लाभ मिल सके। वैसे ही पहले मन की सफाई करना चाहिए फिर सामायिक करना चाहिए ताकि परमात्मा मिल सके। चौथे प्रकार की सामायिक है समास- समास का अर्थ है काम शब्दो में अधिक अर्थ को जान लेना। जैसे चिलायती पुत्र ने उपशम, विवेक और संवर ये तीन शब्द सुनकर आत्मकल्याण कर लिए था। हमे भी ऐसा बनने का प्रयास करना चाहिए।