शरीर से आत्मा निकलते ही बाहरी सुंदरता का कोई अर्थ नही रह जाता – विशुद्ध सागर जी
धमतरी। परम पूज्य युवा संत विशुद्ध सागर म.सा. ने आज के प्रवचन में फरमाया कि हे चेतन तुम इस संसार में न जाने कब से घूम रहे हो। और कितना घूमना बाकी है। पल पल तुम्हारे जीवन का श्वास कम होते जा रहा है। न जाने कितने युगों तक तूमने कितना दुख और कष्ट सहा है। भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी और बरसात के कष्ट को सहा है। फिर भी हर बार तुम्हारा शरीर ही समाप्त हुआ। क्योंकि आत्मा तो अजर अमर और अविनाशी है। तुमने पशु गति में जाकर न जाने कितना समय व्यतीत किया है। नरक में जाकर भी अनंत काल तुमने बिताया है। हे चेतन तू मुक्त गगन का पंक्षी है, ये जगत तेरा साथी नहीं है। अब तेरा पुरुषार्थ सिद्ध , बुद्ध और मुक्त होने के लिए होना चाहिए। तू नरक और तिर्यंच गति से आगे बढ़ा। दुख कुछ कम हुआ। लेकिन शाश्वत सुख फिर भी नही मिला। ज्ञानी कहते है ये शरीर कितना भी सुंदर हो हम चाहे इसे भौतिक वस्तुओं से कितना भी सजा ले । लेकिन जैसे ही इस शरीर से आत्मा निकल जाती है इस सुंदरता का कोई अर्थ नही रह जाता। इस असार संसार में अच्छे स्वरूप का नही बल्कि अच्छे चरित्र का अच्छी आत्मा का दर्शन करना चाहिए। और उनके ही जैसा बनने का प्रयास करना चाहिए। आजतक जितने भी महापुरुष हुए उन सभी ने इस संसार में आकर अपने शरीर को छोड़ दिया। किंतु आत्मा का विकास करते रहे। जिनशासन हमे त्याग की ओर ले जाता है। त्याग से वैराग्य को ओर ले जाता है। और वैराग्य से ही वितराग की प्राप्ति होती है। ज्ञानी कहते है इस संसार में हम जितनी वस्तुओ का उपयोग कर सकते है या करते है उतने का छूट रखकर बाकी का त्याग कर देना चाहिए। इससे कम से कम शेष वस्तुओ के उपयोग के पाप से हम बच सकते है। पापों से बचकर ही आत्मा का विकास किया जा सकता है।
मासक्षमण की तपस्या के उपलक्ष्य में रिया छाजेड़ ने लिया आशीर्वाद
आज रिया छाजेड़ सुपुत्री तिलोक चंद छाजेड़ मासक्षमण (30उपवास) की तपस्या के उपलक्ष्य में देवदर्शन हेतु श्री पाश्र्वनाथ जिनालय पधारे। यहां पधारकर परमात्मा का दर्शन वंदन किया। उसके बाद गुरु भगवंतों से आशीर्वाद प्राप्त किया।