प्रसन्नता, आनंद, सुख तब दूर हो जाती है जब हम बाहर देखते है – परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.
ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत जारी है प्रवचन
सब कुछ करके भी जो श्रेय लेना नहीं चाहते वहीं इस दुनिया में श्रेष्ठ बनते है
धमतरी। ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. द्वारा चातुर्मास के तहत प्रवचन दिया जा रहा है। जिसके तहत आज उन्होने कहा कि हमे न भूत की याद में जाना है न भविष्य की कल्पना में जीना है। हमे सिर्फ वर्तमान में जीना है। प्रसन्नता, आनंद, सुख तब दूर हो जाती है जब हम बाहर देखते है। पर में देखते है। पर में जाते है। ज्ञानी भगन्वत कहते है कि जब मै पर में जाता हुँ तो स्वंय से दूर हो जाता है। पर से मन हटाना है स्वयं में ध्यान लगाना है। ऐसी अवस्था को प्राप्त करना है जहां से फिर लौटकर आना न पड़े। हम ज्ञान का सागर है असीम शक्तियां है लेकिन अपनी शक्ति को देख नहीं पाते, सिर्फ दूसरों की ओर देखते है हमे अपनी दोष दृष्टि को हटाना है। और अपनी महिमा व गुणो को ही देखना है। हमे यह समझना है कि मै कौन हुँ, कहां से आया हँु, और हमे कहां जाना है। मै नित्य चैतन्य शुद्ध ज्योति स्वरुप हुँ इस भाव को समझना है। इस सबको देखते हुए हमे पुरुषार्थ को आगे बढ़ाना है जिसे लगता है समय कम है वह जल्दी-जल्दी मन से पर को हटाए। और जिसके पास समय है वह धीरे-धीरे यह कार्य करें। चिंतन करें हमे प्राप्त समय कितनी तेजी से बीत रहा है क्या इस समय में मै अपना कार्य कर पा रहा हुँ? और जब-जब कार्य करने का मन करें तो मन से पर को हटाना ही होगा। सब कुछ करके भी जो श्रेय लेना नहीं चाहते वहीं इस दुनिया में श्रेष्ठ बनते है। श्रेय लेकर श्रेष्ठता समाप्त हो जाती है। जिस लक्ष्य को लेकर हम आगे बढ़ रहे है क्या वह लक्ष्य हमने प्राप्त किया है यह चिंतन का समय आ गया है। वस्तु का भोग देने पर संतुष्टि प्राप्त न हो तो वस्तु का भोग व्यर्थ है। समय का भोग देने पर समय पर फल न मिले तो समय देना व्यर्थ है। धन का भोग देने पर धन से लाभ न हो तो धन का भोग भी व्यर्थ जाता है। चातुर्मास के दौरान हमने क्या भोग दिया और इस भोग का क्या परिणाम मिला यह चिंतन करें। ममत्व का विसर्जन व समत्व का सर्जण होना चाहिए। हम जहां भी अटकते है उसका कारण ममत्व है।