हमारी गलती यह है कि हम देखते, समझते है लेकिन सुधार हेतु निर्णय नहीं करते – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा
सहजानंदी चातुर्मास के तहत आज सुरेश, संतोष जी पारख संतलहरी नगर निवास में हुआ प्रवचन
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म.सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा द्वारा आज सहजानंदी चातुर्मास के तहत सुरेश, संतोष जी पारख संतलहरी नगर निवास में प्रवचन हुआ। उन्होने कहा कि विचार करें कि स्थान परिवर्तन हुआ पर क्या पुनरावर्तन का परिवर्तन हुआ है। कंही कंही हमे पुनरावर्तन का क्रम रोकना है। कंही कंही पुनरावर्तन का क्रम जारी रखना है। कुछ तो समय निकाले अपनी साधना करें और अपने स्व को देखने का प्रयास करें। वास्तविक में संतोष को प्राप्त करना हो तो संकेत को जानकार सचेत व सावधान हो जाए। हमारा मन संसार की वस्तु में सचेत सावधान रहता है लेकिन जब आत्मा की बात आती है तो क्या हम सचेत रहते है? जिन गतियों से निकलकर आए है उसी गतियों में न पहुंच जाए। ऐसा प्रयास होना चाहिए। उसी गति में पहुंचने का डर होना चाहिए, लेकिन विचार करे क्या हमें डर लगता है? हम संसार के रस में है उसमें हमारा सुख बढ़ेगा या दुख बढ़ेगा विचार करें। ज्ञानी भगवन्तों ने तीन प्रकार के लोग बताये है। पहला देखनंदा, जो सब कुछ देखता है लेकिन कुछ समझ नहीं आता उसे देखनंदा कहते है। कई बार किसी को हमारी को आवश्यकता है लेकिन हम समझ नही पाते, इसलिए सहयोग और साथ देने का भाव नहीं आता यह देखनंदा के कैटगरी में आता है। विचार करें किसी को हमारी आवश्यकता है और हम देखकर निकल जाए तो क्या यह उसे पसंद आएगा? इसे स्वयं के उपर भी लागू करें। आज के कैमरे के माध्यम से कई आंखे हो गई है। लेकिन क्या यह आंखे हमारे भीतर देख पाती है। रावण के पास कुल 10 सिर और कितनी आंखे थी उसने एक को खराब तरीके से देखा जिसका परिणाम कितना बुरा हुआ। हमारे पास तो सिर्फ दो आंखे है लेकिन हम कितने को गलत भाव से देखते है। तो विचार करे हमारा परिणाम कैसे होगा। दूसरे प्रकार का व्यक्ति निरखंदा है, जिसे दिखता है, समझ भी आता है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ नहीं करता। ऐसे व्यक्ति समझने के बाद निर्णय नहीं कर पाते हमे सब समझ आता है लेकिन हम निर्णय नहीं कर पाते। विचार करे आज हम है कल नहीं रहेंगे। शरीर पर लगा हुआ घाव कुछ दिन में ठीक हो सकता है लेकिन क्रोध का भाव कई बार पूरी जिदंगी ठीक नहीं हो पाता। यदि हमारे बोलने के अनुचित बर्ताव से किसी को पीड़ा हुई है। और यह हम समझते है उसके बाद भी निर्णय नहीं कर पाते कि ऐसा नहीं करना है। निरखंदा ऐसे लोग है जो देखकर समझ कर भी सुधरना नहीं चाहते या परिस्थिति को समझकर उसमें सुधार हेतु अपना इनपुट नही देते कोई प्रयास नहीं करते है। इस दुनिया में निर्णय कर ले तो सब कुछ प्राप्त कर सकते है। तीसरे प्रकार के लोग परखंदा होते है। जो देखते है समझते और निर्णय भी करते है। चिंतन करे हमे देखकर समझकर निर्णय भी करना है इससे हम तीसरे स्टेज में पहुंच सकते है। हमारी गलती यह है कि हम देखते, समझते है लेकिन सुधार हेतु निर्णय नहीं करते। जब पता चल जाए जब मेरी किसी बात, गलत व्यवहार से किसी को दुख हुआ तो उस व्यक्ति से बात बंद कर देना सरल है लेकिन यह सही नहीं है। सही करने के लिए उस गलत व्यवहार व अविवेक वाले अनुचित व्यवहार को बंद करना है।
परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा ने बताया कि कल भी सहजानंदी चातुर्मास के तहत सुरेश, संतोष जी पारख संतलहरी नगर निवास में प्रवचन होगा। इसके पश्चात आईदान जीवनलाल लोढ़ा निवास हेतु विहार करेंगे।