ताइवान को बारूद के ढेर में बदल रहा US, 34 करोड़ डॉलर की सैन्य मदद पर चीन को लगी मिर्ची…
चीन ने अमेरिका पर ताइवान को ‘हथियार डिपो’ में तब्दील करने का आरोप लगाया है।
बीजिंग ने यह आरोप तब लगाया है, जब व्हाइट हाउस ने ताइपे के लिए 34.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता की घोषणा की है।
साथ ही ताइवान ने रविवार को कहा कि उसने अपनी समुद्री तट पर चीन के 6 नौसैनिक जहाजों का पीछा किया।
चीन के ताइवान मामलों के कार्यालय ने शनिवार देर रात एक बयान जारी कर ताइवान को सैन्य सहायता दिए जाने का विरोध किया। मालूम हो कि चीन ताइवान पर अपना दावा जताता है।
ताइवान मामलों के कार्यालय के प्रवक्ता चेन बिनहुआ ने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ताइवान की अलगाववादी ताकतें आम करदाताओं का कितना पैसा खर्च करती हैं, अमेरिका कितने हथियार देता है, लेकिन इससे ताइवान समस्या को हल करने या हमारी मातृभूमि के एकीकरण को साकार करने का हमारा संकल्प नहीं डगमगाएगा।’
बयान में कहा गया कि अमेरिका का कृत्य ताइवान को बारूद के ढेर और हथियार डिपो में बदल रहा है, जिससे ताइवान जलडमरूमध्य में युद्ध का खतरा बढ़ रहा है।
चीन ने ताइवान के पास सैन्य गतिविधियां बढ़ाईं
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने हाल के वर्षों में ताइवान के प्रति लक्षित सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं, जिसमें द्वीपीय देश को घेरने के लिए क्षेत्र में लड़ाकू विमान और युद्धपोत भेजना शामिल है।
दूसरी ओर, जापान ने चीन की आक्रामकता, रूस के साथ उसके बढ़ते सैन्य संबंध और ताइवान पर उसके दावे को लेकर चिंता जताई है। जापान की नई सुरक्षा रणनीति के तहत पहली बार बड़े स्तर पर सैन्य निर्माण का आह्वान किया गया है।
प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की कैबिनेट द्वारा स्वीकृत जापान के रक्षा श्वेत पत्र के 2023 संस्करण के अनुसार, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से मौजूदा सुरक्षा माहौल सबसे खराब स्थिति में है।
यह दिसंबर में सरकार की ओर से अपनाई गई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत पहली योजना है, जिसमें टॉमहॉक्स जैसी लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ हमले की क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता बताई गई है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, ‘द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद सबसे गंभीर व जटिल सुरक्षा माहौल के निर्माण में चीन, रूस और उत्तर कोरिया का योगदान सबसे अधिक है।
चीन का रुख और सैन्य गतिविधियां जापान व अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं। यह अभूतपूर्व और बड़ी रणनीतिक चुनौती पेश कर रही हैं।’