आजादी के साढे 7 दशक बाद भी जिले में कुछ गांवो में थमा है विकास का पहिया
सीता नदी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के गांव में बुनियादी सुविधाओं की भी है दरकार
पगडंडी सड़क, मोबाइल कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य सहित आधुनिक सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं ग्रामीण
हर चुनाव में यहां के मतदाताओं ने खाया धोखा, जनप्रतिनिधि व अधिकारी नहीं लेते सुध
धमतरी। वैसे देश को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं बावजूद इसके जिले के कुछ गांव ऐसे हैं जहां विकास का पहिया इतना धीमी गति से घुमा की इसे थमा ही माना जा सकता है. आज भी ग्रामीण बुनियादी सुविधाओ के लिए भी तरस रहे है. बता दे कि नगरी सिहावा क्षेत्र के दुरुस्थ गांव व सीतानदी टायगर रिजर्व क्षेत्र के गांवो में विकास नहीं के बराबर ही हुआ है। हर बार जब भी चुनाव होते है यहां के मतदाताओं को झूठे सपने दिखाकर झूठे वादे किये जाते है। और चुनाव खत्म होते ही नेता गायब हो जाते है। यहीं प्रक्रिया आजादी के बाद से जारी है। ऐसे में ही साढ़े 7 दशक निकल गये और यहां के ग्रामीण आधुनिक सुविधाओं तो दूर बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क पानी, बिजली, स्वास्थ्य सुविधायें और मोबाईल कनेक्टीविटी जैसे सुविधाओं के लिए भी तरस रहे है। चमेदा, मासुलखाई, आमबहार, करका, मादागिरी, बोहर, घोटागांव, बरपदर, गाताबहार, संदबाहरा, आमगांव, पंडरीपानी सहित रिसगांव क्षेत्र के कई गांव आज भी अतीत में जी रहे है। सबसे बड़ी समस्या बारिश के मौसम में आती है। जब कई दिनों तक कुछ गांव कट जाते है। कच्चे पगडंडी रास्तो से होकर गांव से मुख्य मार्ग तक पहुंचते है। कई बार जब परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाता है तो उन्हें अस्पताल पहुंचाने एम्बुलेंस तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में मरीज की जान बचाने चारपाई पर लाद कर उन्हें कंदे पर उठाकर अस्पताल तक पहुंचाते है। यहां दिक्कत मोबाईल नेटवर्क की भी होती है। नेटवर्क यहां भगवान भरोसे होता है। फोन लग भी जाये तो बात होगी इसकी गारंटी नहीं रहती।
ग्रामीणों ने बताया कि चुनाव के आसपास उनके पिछड़े गांव में थोड़ी हलचल होती है। कुछ राजनीतिक पार्टी के लोग व प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारियों के दर्शन हो जाते है। लेकिन चुनाव के बाद उनके दर्शन अगले पांच सालों तक दुलर्भ हो जाते है। जनप्रतिनिधि चयन के इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं हुआ है। इससे त्रस्त होकर पूर्व में चुनाव बहिष्कार की चेतावनी भी दी गई थी लेकिन इसका भी कोई सर नहीं हुआ। आज कई गांव, सोलर लाईट से आधे अधूरे रोशन हो रहे है। ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि टायगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण विकास अवरुद्ध होता रहा लेकिन अब इस दिशा में गंभीरता से विचार होना चाहिए ताकि यहां के निवासियों को भी उनके मौलिक अधिकार मिल सकें।
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