घाटों से रेत के अवैध उत्खनन से नदी किनारे बसे गांवो में बढ़ा बाढ़ का खतरा
महानदी, खारुन, पैरी, सोंढुर नदी के किनारे बसे 77 गांव में हर साल रहता है बाढ़ का खतरा
मशीनों के माध्यम से मनमाने अवैध खनन के कारण बदल रहा नदी का स्वरुप
धमतरी। बरसात के मौसम में हर साल नदी किनारे बसे गांवो में बाढ़ का खतरा रहता है, लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस प्रकार महानदी का सीना चीर कर रेत मनमाने ढंग से निकाली जा रही है। उससे नदियों का स्वरुप बदलता जा रहा है। नतीजन नदीं किनारे बसे गांवो में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। इस बार बताया जा रहा कि प्रदेश व जिले में मानसून की दस्तक समय के पहले हो जाएगी। मौसम विज्ञानियों द्वारा इस साल औसत से ज्यादा बारिश और मानसून अच्छा रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसे में नदी किनारे बसे गांवो में जहां पहले से बाढ़ का खतरा रहता है वहां अवैध तरीके से मनमाने ढंग से रेत की चोरी के कारण नदियों का स्वरुप बदलने लगा है। इससे जब नदियों मानसून में उफान पर होंगी तो नदी कि दिशा भी गांव की तरफ परिवर्तित होने से खतरा बढ़ सकता है। दरअसल अंधाधुन रेत निकासी के कारण घाटो में खनन क्षेत्र का दायरा बढ़ता गया। रेत माफियाओं को जहां रेत नजर आती वहां मशीनों के माध्यम से खुदाई करवा कर रेत का अवैध कारोबार चलता रहा है। इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण अंसतुलन के रुप से नजर आ सकता है।
बता दे कि जिले में छोटी बड़ी नदियों के साथ ही नाले रफटा भी उफान पर रहते है। महानदी वैसे तो धमतरी सहित कई जिलो की जीवनदायिनी नदीं है। लेकिन जब इसके स्वरुप से छेड़छाड़ हो तो यह घातक भी बन सकती है। महानदी के 55 गांव, खारुन नदीं के 13, सोंढुर नदी के 3 और पैरी नदीं के 6 गांव कुल मिलाकर 77 गांवो में हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ का खतरा रहता है। चूंकि बारिश के मौसम में चार महीने रेत खदाने बंद रहती है। इसलिए रेत के अवैध परिवहन व डम्प हेतु अंधाधुन तरीके से रेत निकाल कर प्राकृतिक संसाधन का दोहन किया जा रहा है। खनिज विभाग द्वारा कभी कभार छुटपुट कार्रवाई कर खामोश हो जाती है। जिसके चलते अवैध खनन परिवहन थम नहीं पा रहा है।
कई गांव में किया जाता है राशन डम्प
जिले के कुछ गांव ऐसे है जहां बारिश के मौसम में आवागमन ठप्प हो जाता है। या कहे ये गांव कट जाते है इसलिए दवाईयां, राशन जैसे आवश्यक सामाग्रियों का स्टाक गांवो में किया जाता है। बता दे कि लगभग 15 से 20 गांव बारिश के मौसम में मूसलाधार वर्षा के कारण टापू बन जाते है। इसलिए जिला प्रशासन द्वारा ऐतिहातन पहले से ही राशन डम्प किया जाता है। आमाबारा, करैहा, संदबाहरा, आमझर, नयापारा, बुडरा, साल्हेभाट, जोरातराई, उजरावन, जोगीबिरदो, गाताबाहरा, मासुलखोई आदि गांव में बारिश के मौसम में टापू में तब्दील हो जाते है।