पाप कर्म कर हम अपने जीवन को दुखमय बना लेते है – संत लोकेश
धमतरी। प्रेम प्रकाश आश्रम के संत लोकेश ने प्रेम प्रकाश आश्रम पर स्व. लालचन्द वाधवानी के सुपुत्र राजकुमार एवं नरेन्द्रकुमार वाधवानी परिवार द्वारा आचार्यश्री सद्गुरु स्वामी टेऊँराम जी महाराज के चालीहा महापर्व के 16 वें दिन के चालीसा पाठ हेतु आयोजित सत्संग-सभा में आचार्यश्री के रचित अमरापुर वाणी के राग धनाश्री भजन गाकर बताया कि पापी पुरुषों का संग करने से जीव का मन पाप कर्म की ओर जाएगा एवं पाप कर्म करने हेतु अग्रसर होगा एवं पाप करने से यह जो संसार दुखों का सागर है इसमें जीव गोता खाने के लिए विवश होगा व इस प्रकार से पाप कर्म कर जीव अपने जीवन को दुखमय बना लेता है अत: पापी पुरुषों के संगत को त्याग कर जीव को सत्पुरुष महात्माओं का संग करना चाहिए क्योंकि सन्तों का संग सुखदाई है जीव को गुरु के पास जाकर अपने अभिमान रुपी सिर को गुरु के चरणों में न्योछावर कर उनसे नाम दान लेकर हरि का सुमिरन करने की विधि प्राप्त कर जीव हरि को ही अपना मानकर भजन करने हेतु प्रेरित होगा।
हरि के भजन बिना सुख पाना सम्भव ही नहीं है हरि ही सुखों का सागर है अत: जीव को हरि से प्रेम कर उसे अपना बनाना चाहिए इस बात को बताने के लिए सन्त जी ने इस भजन को गाकर उपस्थित भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया हरि का भजन करो हरि है तुम्हारा हरि के भजन बिन नहीं गुजारा हरि ही दीन बन्धु है दया सिन्धु है करुणा का सागर है सुखों का भंडार है हरि के गुण गाए जाओ दीनों पर दया करो सेवा करो एवं संसार से मोह को हटाकर हरि से ही प्रेम करो यही भक्ति है यही योग है एवं यही ज्ञान है।