गुरु की बात न मानने वाला शिष्य सतमार्ग से भटक जाता है – लयस्मिता श्री जी म. सा.
चातुर्मास के तहत पाश्र्वनाथ जिनालय में हुआ प्रवचन
धमतरी । आज चातुर्मास का दूसरा दिन है। आज गुरु पूर्णिमा होने के कारण यह दिन और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। अपने प्रवचन के माध्यम से परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म. सा. ने बताया की जिस प्रकार वकील की बात न मानने वाला न्यायालय में केस हार जाता है, डॉक्टर की बात न मानने वाला मरीज जीवन हार जाता है उसी प्रकार गुरु की बात न मानने वाला शिष्य सतमार्ग से भटक जाता है। और जो जिनवाणी पर श्रद्धा नही रखता , विश्वास नहीं रखता वो भव भव भटकते रहता है। अगर भव भव से छुटकारा पाना है तो जिनवाणी पर विश्वास होना चाहिए। जिनवाणी अपने अंतर्मन में आना चाहिए, इसके प्रति जिज्ञासा होनी चाहिए। गुरु सर्वोपरि है। एक अक्षर का ज्ञान देने वाला भी गुरु है। जीवन में भ्रम को मिटाने वाला गुरु ब्रह्मा के समान है। शंकाओं का समाधान करने वाला गुरु शंकर के समान है। हमारे लक्ष्य को बताने वाला गुरु लक्ष्मीपति विष्णु के समान है। गुरु के गुण, आचरण, संस्कार ही हमे गुरु बनाने के लिए प्रेरित करते है। हमे अपने सदगुरु से सरलता, सहजता और मीठी वाणी मांगनी चाहिए। जिससे जीवन का कल्याण हो सके।
जीवन की प्रथम गुरु मां है -अमिवर्षा श्री जी म.सा.
परम पूज्य अमिवर्षा श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन के माध्यम से कहा कि जीवन की प्रथम गुरु मां है। जन्मदात्री मां के कारण ही जीवन में प्रगति होती है। थोड़े बड़े होने पर जब जीवन में सुख दुख आता है, ऐसे समय में साथ देने वाला पिता दूसरा गुरु होता है। पिता हमे चलना सिखाते है, डगमगाने पर संभलना सिखाते है। हर विपरीत परिस्थिति में हमारे साथ होते है। तीसरे गुरु सदगुरु है। सदगुरु जिन सिद्धांतो पर चलते है वही प्रेरणा , वही मार्ग हमे भी बताते है। हम जब उनके बताए गए मार्ग पर चलकर लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते है तो निश्चित ही सफलता मिलती है और हम मंजिल तक पहुंचते है। 28 लब्धि के धारक श्री गौतम स्वामी ने नम्र भाव से, समर्पण भाव से अपने गुरु भगवान महावीर से पूछा किं तत्त्वम यह प्रश्न तीन बार पूछकर द्वादशांगी की रचना कर दी। हमे भी अपने जीवन में अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखना चाहिए। गुरु पूर्णिमा का दिन हमे रास्ता दिखाने आया है। गुरु के आशीर्वाद से जीवन का कल्याण हो जाता है।
गुरु पूजा के बाद कोई पूजा शेष नहीं रहती -भव्योदया श्री जी म.सा.
परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि गुरु पूर्णिमा तीन शब्दों से बना है गुरु +पूर्ण+ मां। अर्थात गुरु ही पूर्ण मां है। मेरे उपर पूज्य गुरुवार्य श्री का अनंत उपकार है। जैसे एक शिल्पकार पत्थर को छीनी हथौड़ी से मार मारकर सुंदर मूर्ति का स्वरूप दे देता है जिसके कारण वह पूज्यनीय हो जाता है उसी प्रकार मेरे जीवन रूपी पत्थर की शिल्पकार है गुरूवर्या श्री। हमे आधुनिक युग में बड़ी बड़ी डिग्री तो मिल जाती है पर अच्छे इंसान बनने की डिग्री किसी यूनिवर्सिटी से नही मिलती। ये डिग्री तो सदगुरु से ही मिलता है। एक बार गुरु जब हृदय में बस जाते है फिर उन्हे कोई नही निकाल सकता। ज्ञानियों ने कहा है कि गुरु की पूजा के बाद कोई पूजा शेष नहीं रहती। अपना हाथ गुरु के हाथ में सौंप देना चाहिए ताकि हम सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाए।
वासक्षेप से की गई गुरु पूजा
प्रवचन के बाद परम पूज्य छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि महत्तरा पद विभूषिता मनोहर श्री जी म.सा.के मूर्ति समक्ष वासक्षेप से गुरु पूजा की गई।