पथ प्रदर्शक के रूप में जब श्री कृष्ण जैसा गुरु मिल जाए तो सफलता निश्चित हो जाती है -विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज एक ऐसे व्यक्तित्व का जन्मदिवस मनाया जा रहा है। जो सनातन धर्म में भगवान श्री कृष्ण के नाम से जाने जाते है । जिनका भूत और भविष्य दोनो धवल है। कान्हा, कन्हैया, श्री कृष्ण महाराजा और द्वारिकाशीष ऐसे न जाने कितने नामों से हम उन्हें जानते है। जिनका शरीर तो श्यामवर्ण था किंतु जीवन पूरी दुनिया को राह दिखाने वाला है। पूरी दुनिया को नि:स्वार्थ प्रेम की शिक्षा देने वाले, स्वयं कर्मयोगी बनकर पूरी दुनिया को कर्मयोग का पाठ पढ़ाने वाले भगवान श्री कृष्ण का आज जन्मदिवस जन्माष्टमी के रूप में मनाया जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण का एक वासुदेव के रूप में जेल में जन्म हुआ। आपके जन्म के साथ ही जेल के ताले अपने आप खुल गए। और आप जन्म देने वाली मां से जीवन देने वाली मां के पास पहुंच गए। आपका जीवन मित्रता का श्रेष्ठ उदाहरण है। आपने अपने मित्र सुदामा को बचपन में ही वचन दे दिया था अगर तुम्हारे ऊपर कोई भी संकट आए तो मुझे जरूर याद करना। मैं हर संकट में तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा। आप जब द्वारिकाधीश बने तब एकबार सुदामा आपसे मिलने आए। उस समय आप अपना सबकुछ छोड़कर अपने उस बालमित्र से मिलने दौड़ते हुए महल के बाहर आ गए थे। और उस मित्र को गले लगाकर रो पड़े। पूरी जनता देखते रह गई की एक राजा कैसे एक गरीब ब्राह्मण से अपनी मित्रता निभाता है। उसके लिए नंगे पैर महल से बाहर दौड़कर आ जाता है। आज हमारी मित्रता कैसी है ये विचार करना चाहिए और श्री कृष्ण के जीवन से सच्ची मित्रता की शिक्षा लेनी चाहिए। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण जैसा सम्यक दृष्टि वाला सारथी मिला तब उन्हे सफलता मिली।
पथ प्रदर्शक के रूप में जब श्री कृष्ण जैसा गुरु मिल जाए तो सफलता निश्चित हो जाती है। भगवान श्रीकृष्ण जैसा गुरु मिल जाए और हम अर्जुन जैसा शिष्य बन जाए तो जीवन के इस युद्ध में हम विजय प्राप्त कर सकते है। महाभारत युद्ध के प्रारंभ होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा कि हमे केवल कर्म करना चाहिए फल की चिंता नही करनी चाहिए। कर्म करते समय केवल इतना ध्यान रखना चाहिए की हमारे कर्म हमेशा धर्म और सत्य के लिए होना चाहिए। इस संसार में शरीर नाशवान है लेकिन आत्मा अजर अमर है। इसलिए कर्म करते समय अपनी आत्मा की चिंता करनी चाहिए शरीर की नही। क्योंकि शरीर की चिंता करने वाला संसार में भटकते रह जाता है और आत्मा की चिंता करने वाला संसार से मुक्त हो जाता है। हमे भी अपने जीवन में एक गुरु ऐसा बनाना चाहिए जिनकी बातों को हम हृदय से स्वीकार कर सके। उनके किसी भी बात पर कभी भी कोई प्रश्न चिन्ह न लगाए। भगवान श्री कृष्ण चाहते तो क्षणभर में युद्ध समाप्त कर सकते थे लेकिन उन्हें इस संसार को अर्जुन के माध्यम से आध्यात्म की शिक्षा गीता ज्ञान के रूप देनी थी साथ ही दुनिया को ये भी बताना था की जब धर्म और सत्य के लिए युद्ध आवश्यक हो जाए अपने कर्म से पीछे नहीं हटना चाहिए। हमारे जीवन में भी अर्जुन के जैसा समर्पण भाव अपने गुरु के प्रति आना चाहिए। दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति में बहुत सारे अवगुण है साथ ही कुछ गुण भी है। लेकिन हमे प्रयास करना है की हम दूसरो के गुणों को देखने की और उसे अपने जीवन में लाने की योग्यता प्राप्त करे।