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संसार के सभी जीव अपने कर्मो के कारण ही पीडि़त या सुखी है – विशुद्ध सागर जी म.सा.

इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत रोजाना प्रवचन है जारी

धमतरी। इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत रोजाना प्रवचन जारी है। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि जीवन में न राग रहे ना द्वेष। बस जीवन में तेरा शरण चाहिए। जब जीवन में तेरा शरण मिल जायेगा तो आत्मा में कोई कर्म शेष नहीं रह जाएगा। मेरे जीवन में भगवान तेरा एक अंश भी आ जाए तो आत्मा से परमात्मा बनने से कोई नहीं रोक सकता। बस हमे इतना ही प्रयास करना है की परमात्मा का एक अंश मिल जाए। हे परमात्मा आप समताधारी है। आप करुणा का दान करने वाले करुणा निधान है। आपने अपना पूरा जीवन दया और धर्म में व्यतीत कर दिया। अब मुझे भी ऐसा ही जीवन जीने का पुरुषार्थ करना है। जब जीवन का अंतिम क्षण आये, जब मौत निकट आये। उस समय मेरे आंख बंद रहे और मेरे होठों में बस आपका ही नाम रहे। तेरे ही आस के साथ ये सांस छूट जाए, तो निश्चित ही मेरा इस संसार से छुटकारा हो जायेगा। हमें परमात्मा के सिद्धांतो के जानने समझने और जीवन में उतारने का प्रयास करना है। हम वो सुनना चाहते है जो हमे स्वीकार हो। और हम उसे नही सुनना चाहते जो हमे स्वीकार न हो। किंतु जिनवाणी कहता है एक ही तत्व में सभी को स्थित होना चाहिए। प्रयास कभी भी छोटा या बड़ा नही होता। बल्कि प्रयास तब तक होना चाहिए जब तक सफलता न मिल जाए।

इसी प्रकार जिनवाणी को थोड़ा थोड़ा अपने जीवन में तब तक उतारने का प्रयास करना है जब तक हमारी आत्मा भी परमात्मा न बन जाए। मोक्ष में जाने के लिए जीवन में तीन भाव को लाना आवश्यक है। पहला भाव मैत्री भाव, दूसरा भाव प्रमोद भाव, तीसरा भाव करुणा भाव। संसार के सभी जीव अपने कर्मो के कारण ही पीडि़त या सुखी है। जिनके अच्छे कर्म का उदय है वो सुखी है और जिनके बुरे कर्म का उदय है वो दुखी है। इसलिए अपने बुरे कर्मो के उदय के समय भी हमे अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि भविष्य में फिर बुरे कर्मो के उदय के कारण दुखो का सामना न करना पड़े। जिनवाणी के संबंध में हमेशा दिल से सोचना चाहिए दिमाग से नही। क्योंकि दिमाग से सोचने पर गलती हो सकती है लेकिन दिल से विचार करे तो कभी गलती नहीं होगी। हम मोह में फंसकर अपने कर्तव्य को भूल जाते है। मोह और लोभ की पूर्ति न होने पर हम कषाय करते है। कषाय दो शब्दो से बना है। कष अर्थात कसना और आय अर्थात आयु बढऩा। अर्थात जो हमारी संसार में भटकने की आयु बढ़ा दे वो कषाय है। हम इस आत्मा को मोह का रस जितना पिलाएंगे ये आत्मा संसार में उतना ही ज्यादा भ्रमण करेगा। ज्ञानी भगवंत कहते है परमात्मा की आत्मा को अनुकूल और प्रतिकूल दोनो परिस्तिथिया एक साथ मिलती है। लेकिन उनके हृदय में दोनो परिस्तिथियों के लिए हमेशा एक जैसे ही विचार आते है। इसलिए वो परमात्मा बन गए। लेकिन हमारा विचार परिस्तिथियो के अनुसार बदलते रहता है इसलिए हम आजतक संसार में भटक रहे है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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