पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि व आत्मा के दर्शन का पर्व है-विशुद्ध सागर जी म.सा.
आज से पर्युषण पर्व की हुई शुरुवात
परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज पर्युषण पर्व का प्रथम दिवस है। ये आत्मशुद्धि का पर्व है। ये पर्व अपनी आत्मा के दर्शन का पर्व है। इस पर्व में चारो ओर साधना का रंग छाया है। इस पर्युषण पर्व के माध्यम से अपने हृदय में अध्यात्म की रेखा खींचना है। अपनी नम्रता के भाव से वज्र जैसे हृदय को पिघलाने का कार्य करना है। यह पर्व प्रीति के शोधन का पर्व है। आज तक जिनके साथ हमारा किसी भी कारण बैर या द्वेष का भाव बन गया था। उसे आज दूर करके अपने मन में प्रीति का भाव लाना है। आज के दिन का भव्य जीवों को हमेशा इंतजार रहता है। हमे आज का ये दिन देखने का अवसर मिला इसलिए स्वयं को सौभाग्यशाली समझना चाहिए। हम तप, आराधना और साधना कभी कभी करते है जबकि पुण्य का कार्य लगातार अनवरत चलते रहना चाहिए। तभी आत्मा का विकास भी निरंतर होते रहेगा। इस पर्व में हमे प्रदर्शन से स्वयं के दर्शन तक आना है। हम किसी भी पर्व को परंपरा से मनाते चले आ रही है जबकि पर्व को परंपरा के पालन के लिए नही बल्कि भव-भ्रमण की परंपरा को तोड़ने के लिए मनाना चाहिए। विकृति और विकारो के महल पर हमारी आत्मा पहुंचकर जब उसे सुख मान कर अपनी आत्मा को दुखी करने का कारण बन जाती है। आत्मा के उस दुख को दूर करने के लिए अपने विकारों और विकृति को शांत करने के लिए पर्युषण पर्व आया है।पर्युषण दो शब्दो से बना है। परी और उसन – परी अर्थात चारो ओर से और उसन का अर्थ है आत्मा में लगे विकारों को दूर करना। अर्थात अपनी आत्मा में लगे विकारों को दूर करके आत्मा के विकास का कार्य करना चाहिए।पर्व दो प्रकार के होते है। लौकिक पर्व और लोकोत्तर पर्व। लौकिक पर्व में हम अपने संसार भ्रमण को बढ़ाने वाले पर्व को मनाते है। लोकोत्तर पर्व में हम आत्मा के विकास का कार्य करते है। अपनी आत्मा से अज्ञान को निकालकर ज्ञान का प्रकाश लाने का कार्य लोकोत्तर पर्व में होता है.पर्युषण पर्व में हमे पुण्य का पोषण करना है और पाप का शोषण करना है ।इस पर्व के माध्यम से अपनी निर्बल आत्मा को सबल बनाने के लिए समूह में आना है। आत्मा में आने वाले कर्मो के द्वार को बंद करने के लिए यह पर्व आया है। इस पर्युषण पर्व के आठ दिनों में देव भी नंदीश्वर द्वीप पर जाकर आराधना-साधना करते है। जैसे एक गन्ना में जहां जहां गांठ होता है वहां वहां रस नही होता। उसी प्रकार इस आत्मा में जब तक विषय विकारों का, राग द्वेष का गांठ लगा हुआ है उस गांठ को जब तक नही खोलेंगे तब तक इस आत्मा में परमात्मभक्ति का रस नही आ सकता।आज प्रवचन के माध्यम से नंदीश्वर द्वीप की भावयात्रा कराई गई।नंदी अर्थात आनंददायी। ईश्वर अर्थात भगवान या परमात्मा। अर्थात जहां आनंद का राज हो वो नंदीश्वर द्वीप है। आठवां द्वीप नंदीश्वर द्वीप है। पर्युषण पर्व के इन आठ दिनों में देवी देवता भी इस द्वीप पर जाकर परमात्मा की स्नात्रपूजा करते है। आराधना साधना करके अपने जीवन को धन्य बनाने का पुरुषार्थ करते है।पर्युषण पर्व के पहले दिन नंदीश्वर द्वीप की भावयात्रा की जाती है। नंदीश्वर द्वीप में पहले तीर्थंकर परमात्मा आदिनाथ की भव्य प्रतिमा है। इस द्वीप पर हम भाव से पहुंच सकते है।इस द्वीप में कुल 13 पर्वत, 52 जिनालय तथा आदिनाथ परमात्मा की भव्य प्रतिमा सहित कुल 6448 जिन प्रतिमा है।