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आत्मा का विकास करना है तो जीवन से द्वेष निकालना होगा – विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में कहा कि हे परमात्मा आप ही है जो मुझे इस संसार से मुक्ति दिला सकते है। भव भव के द्वेष को जीतने वाले परमात्मा पाश्र्वनाथ का जीवन चरित्र हमे जानने का प्रयास करना है। किस तरह ये भावी के भगवान अपने अपकरी पर भी उपकार करके कमठ जैसे को भी तार देते है। हमे विचार करना है की हम जो पाने की इच्छा करते है क्या उसके अनुरूप अपना पुरुषार्थ भी हो रहा है। अगर पुरुषार्थ सही दिशा में नही चल रहा है तो परिणाम भी अनुकूल नहीं आ सकता। हमारे जीवन में जब तक संसार की वस्तुओ को पाने की इच्छा है तक तक आत्मा से स्नेह नही हो सकता। हमे उस आत्मा की चिंता करनी है जो हमारे कर्मो के साथ जाने वाला है। आत्मा का विकास करना हो तो जीवन से द्वेष को निकालना होगा। पुरुषादानी परमात्मा पाश्र्वनाथ भगवान के पांचों कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुआ। काशी देश के बनारस नगरी के राजा अश्वसेन की भार्या वामादेवी की रत्नकुक्षी से हुआ था। परमात्मा पाश्र्वनाथ को हाथी के भव में सम्यक दर्शन की प्राप्ति होती है और उसी भव से भव की गिनती प्रारंभ होती है। पूर्वभव में वीस विहरमान तप करके तीर्थंकर नाम कर्म का बंद करते है। सम्यक दर्शन के भव से दसवें भव में परमात्मा का जन्म होता है। परमात्मा का विवाह प्रशेनजीत राजा की पुत्री प्रभावती के साथ परमात्मा का विवाह संपन्न हुआ। परमात्मा पाश्र्वनाथ और कमठ का बैर का संबंध 9 भव से था। परमात्मा पंचागनी साधक तापस की साधना में जीव हत्या बताकर उसके द्वारा जलाई गई लकड़ी के दो टुकड़े कराकर उसमे से जलते हुए साप के जोड़े दिखाते है। उन सापों को नवकार मंत्र सुनाया। जिसके प्रभाव से दोनो सर्प देवलोक में धर्मेंद्र और पद्मावती बने।

परमात्मा पाश्र्वनाथ के मन में नेमीनाथ परमात्मा के बारात का चित्र देखकर वैराग्य जाग गया। भगवान 30 वर्ष गृहस्थ में रहे। कुल 100 वर्ष की आयु पूर्ण कर परमात्मा पौष बदी दशमी को मोक्ष पधारे। परमात्मा पाश्र्वनाथ 24 तीर्थंकरों में सबसे अधिक पुण्यशाली कहे जाते है। क्योंकि परमात्मा देवलोक में रहते हुए 500 कल्याणकों में भाग लिए थे। जैन दर्शन के अनुसार 24वे तीर्थंकर शासन नायक परमात्मा महावीर का जन्म चैत्र सुदी तेरस के दिन सिद्धार्थ राजा की भार्या त्रिसला रानी की रत्नकुक्षी से हुआ था। सम्यक प्राप्ति के बाद आपके 27 भाव हुए। भगवान महावीर के छ: कल्याणक हुए। हुंडा अवसर्पिणी काल आने पर न होने योग्य कार्य अर्थात अच्छेरे अर्थात आश्चर्य जनक कार्य होते है। इस तरह के कुल दस आश्चर्य हुए। इसी कारण परमात्मा महावीर के छ: कल्याणक हुए। बाकी सभी तीर्थकर परमात्मा के पांच कल्याणक हुए। आज हम परमात्मा महावीर के शासन में है। भगवान 30 वर्ष गृहस्थ जीवन में रहे। साढ़े बारह वर्ष तक छदमस्त अवस्था में रहे। लगभग 30 वर्ष केवल पर्याय पालकर कार्तिक बदी अमावस्या के दिन आपका निर्वाण हो गया। 24 तीर्थंकरों में सबसे कम आयु लेकिन सबसे अधिक कष्ट भोग कर अपने कर्मो का क्षय करने वाले परमात्मा महावीर है। आज देवचंद्र जी महाराज की पुण्यतिथि है। अपने स्तवनों के माध्यम से परमात्मा के सिद्धांतो को हम तक आप पहुंचाते थे । उनके स्तवनो का आलंबन लेकर हम परमात्मा का स्मरण करते है। अपने स्तवन के माध्यम से ये कहते है की ही परमात्मा मैं तो कुछ भी नही हूं। परमात्मा के सबसे पहले स्नात्रपूजा की रचना करने वाले देवचंद्र जी महाराज की आज पुण्यतिथि है। जैन ग्रंथो में देवचंद्र जी महाराज द्वारा रचित ज्ञान ग्रंथ आज भी अनुकरणीय है। ऐसे परम उपकारी को याद करने का दिन है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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