हमे विचार करना चाहिए कि जो मानव जीवन हमें मिला है उसका एक एक दिन व्यर्थ होने से कैसे रोका जाए – श्री विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म.सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म.सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म.सा. ने आज के प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि ज्ञानी कहते हैं कि ही मानव सोते सोते ही तेरी सारी जिंदगी निकल गई। इस जिंदगी को जिसे तू बहुत प्यार करता है ये बोझा ढोते ढोते ही निकल गई। हम शरीर की दृष्टि से तो जाग रहे हैं लेकिन आत्मा की दृष्टि से सो रहे हैं। जबकि आत्मा की दृष्टि से जागने का कार्य करना है। जब से इस दुनिया में जन्म लेकर हम आए हैं तब से हम उथल पुथल मचा रहे हैं। जन्म लेते ही भूख के कारण चिल्लाने लगते हैं। खेलकूद में ये बचपन बीत गया। युवावस्था संसार के राग और विषय भोग में फंसकर पाप कार्यों में निकल गया।
इस प्रकार भोग में ही सारी जिंदगी निकल गई। धीरे धीरे शरीर में जब बुढ़ापा आने लगा ये मजबूत काया अर्थात शरीर कमजोर हो गया और न जाने कितने रोगों ने इसे अपना घर बना लिया। शरीर डगमगाने लग गया। ज्ञानी कहते हैं बचपना, युवावस्था और बुढ़ापा ये तीनों शरीर की अवस्था है। वास्तव में आत्मा की कोई अवस्था नहीं है। जीवन का अंत होने पर ये शरीर आग की लपटों में जल जायेगा। इसलिए हे चेतन इस शरीर का अंत समय आने से पहले आत्मा की दृष्टि से जाग जा। आत्मा के विकास का मार्ग प्रशस्त कर लें। क्या हमने कभी विचार किया कि ये मानव जीवन रूपी अमूल्य अवसर जो हमें मिला है उसका एक एक दिन व्यर्थ हो रहा है इसे कैसे रोका जाए? इसका कैसे उपयोग किया जाए? कैसे इस अमूल्य मानव भव को सार्थक किया जाए? अगर अभी तक हमने इस जीवन में सार्थक चिंतन नही किया, प्रयास नहीं किया तो अब जाग जाओ और अपनी आत्मजागृति के लिए पुरुषार्थ करो।