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वास्तविक मे सुख भीतर है, लेकिन हम बाहर ढूंढते है – परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.

सुख मिलेगा या नहीं पता नहीं लेकिन हम इसकी कल्पना से ही हम दुखी हो रहे है

धमतरी। ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. द्वारा प्रवचन दिया जा रहा है। जिसके तहत आज उन्होने कहा कि गुरुओं का मेरे जीवन पर बड़ा उपकार है। मै जिस चीज के लिए घबराता था जिसके प्रति ज्यादा आपेक्षित था गुरुदेव ने पल भर में उस शंका का समाधान किया। उन्होने गुरु भगवन्तों से कृपा दृष्टि बनाये रखने की प्रार्थना की और कहा आप जो चाहते है वह बनने की हमारी कोशिश अवश्य होनी चाहिए।
उन्होने आगे कहा कि वास्तव में ममत्व, मोह को मानते है कि इसके बिना कार्य नही हो सकता, लेकिन वास्तविक में जब तक यह रहता है तब तक कार्य नहीं हो सकता है। चिंतन करें की हमे यह जीवन एक अवसर के रुप में मिला है। और हम इसे व्यर्थ ही गवां रहे है। चिंतन करें भक्ति, आस्था, विवेक कम न हो। बल्कि बढ़ता जाए तभी वास्तविक में जीवन सार्थक होगा। परमात्मा ने 3 प्रकार के व्यक्ति बताये है पहला भवभीरु, हमे में भव के भ्रमण में नहीं जाना चाहिए। यह विचार करें क्या हमे भव भ्रमण का दुख है। यह जीवन समाप्त होने के बाद वापस जन्म कहां मिलेगा क्या हम इस पर विचार करते है। और इसका समय जब बीत जाता है तब व्यक्ति इस पर विचार करता है। विचार करें हम इस जीवन में कहां से आए है? रहना कहां है? यह पता है लेकिन वास्तविक में हमे यहां भी रहना आता है? हमने जो पहले किया उसका परिणाम आज मिल रहा है और जो आज कर रहे है उसका परिणाम आज और आने वाले कल में मिलेगा। दूसरा है पापभीरु, यदि हम भवभीरु न बने तो पापभीरु बन जाते है। आज के दौर में सबसे ज्यादा बदलाव यह हुआ है कि व्यक्ति पाप करने से डरता नहीं है। जब व्यक्ति नीम का बीज बोये तो भरा आम का फल कैसे मिलेगा। हम पाप की इच्छा बढ़ाते जा रहे है। हमें भव भ्रमण से डर लगना चाहिए। तीसरा सुखभीरु, हमे सुख से भी डर लगना चाहिए, वास्तव में हम सुख प्राप्त करने के लिए जो प्रयास कर रहे है वह पाप न हो। सुख की कल्पना ही दुख का कारण बन जाता है। इसलिए सुख से भी भयभीत होना चाहिए। हम सुख पाने के लिए दूसरों को भयभीत कर देते है तब सुख, दुख का कारण बन जाता है। वास्तविक में सुखभीरु रहेगा वह सुख पाने के लिए पाप करेंगा और पाप के परिणाम स्वरुप दुख मिलेगा। और दुखी व्यक्ति भव भ्रमण करता है। सुख मिलेगा या नहीं पता नहीं लेकिन हम इसकी कल्पना से ही हम दुखी हो रहे है। वास्तविक मे ंसुख भीतर है, लेकिन हम बाहर ढूंढते है। विचार करें अनंत पुण्य से यह मानव जीवन मिला है। यह पाप हमे वापस वहीं ले जायेगा। जहां सिर्फ दुख ही दुख मिलेगा।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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