जीवन को अच्छा, सच्चा, नेक बनाने के लिए विचार को सुुविचार बनाना है – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा
सहजानंदी चातुर्मास के तहत भंवरलाल, मूलचंद जी छाजेड़ के अमलतासपुरम निवास में हुआ प्रवचन
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म.सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा द्वारा आज सहजानंदी चातुर्मास के तहत भंवरलाल, मूलचंद जी छाजेड़ के अमलतासपुरम निवास में प्रवचन हुआ। परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा ने कहा कि जब घर में परमात्मा की स्थापना हो तो घर मंदिर बन जाता है। और यदि मन में परमात्मा की स्थापना हो तो मन मंदिर बन जाता है। क्या इस मन को मन को मंदिर बनाना है विचार करें। कुछ विचार हो तो ही कार्य होगा। और यदि विचार न करें तो कार्य नहीं होगा। किसी भी कार्य को करने के लिए सबसे पहले विचारो को स्थान देना होगा। और जब तक विचारों को स्थान नहीं देंगे तब तक उसका फल प्राप्त नहीं हो सकता। छोटा सा भी कार्य करना हो तो भी विचार करना पड़ता है। जिन्हें विचार नहीं आता तो विचार शून्य व्यक्ति जीवित नहीं मूर्दा होता है। जो जी रहा है उसे ही जीव कहा जाता है और जीव में ही विचार आते है। जीवन को अच्छा, सच्चा, नेक बनाने के लिए विचार को सुुविचार बनाना है। व्यक्ति की पूजा करना सरल है लेकिन व्यक्तित्व तक हमे पहुंचना है। वास्तविक में व्यक्ति की नहीं विचारों की पूजा होती है। और सिर्फ विचारों की नहीं अच्छे विचारों की पूजा होती है। आज गुरु, परमात्मा की पूजा है लेकिन वास्तविक में उनकी नहीं है उनके अच्छे, सच्चे, नेक विचारो की पूजा है। उनके विचारों में था कि अपने कार्यो से किसी को दुखी नहीं करना है। लेकिन हमारे विचार ऐसे है कि भले ही कोई दुखी हो हमे सुखी होना है। परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा ने कहा कि जो अंदर है उसी का प्रभाव बाहर दिखता है। हमारे विचार अच्छे न हो तो क्या बाहर व्यवहार अच्छे हो सकते है? कई बार हमारा अच्छा व्यवहार जो हमे अच्छा लगता है दूसरों को अच्छा नहीं लगता क्योंकि व्यवहार को बल विचारों से मिलता है। परमात्मा के विचारो में था कि मुझे किसी को दुखी नहीं करना है। तो उन्होने दुखी करने वालो को भी दुखी नहीं किया। लेकिन सुखी रहने के लिए जो हमे सुखी करते है उन्हें भी दुखी करना पड़े तो कोई मौका नहीं छोड़ते है। किसी की गलती दिख जाए तो चार लोगो के सामने बोलकर हम स्वयं गलत करते है। हमे अपने जीवन को सुविचारो के से सिंचना है। हमने अपने मन को किन भावों से भर कर रखा है क्या इसका कभी विषलेशन करते है? देखते है कि वास्तविक में हमारे अंदर चल क्या रहा है? क्या हमारे पास कुछ देर का भी समय है अपने विचारो को देखने के लिए? सबकी चौकीदारी करने को तैयार यह मन क्या अपने स्वार्थ की चौकीदारी करता है? चिंतन करे कि दूसरों के विचार को ठीक करने का मन बनता है क्या अपने विचारों को ठीक करने का प्रयास हमने किया है?