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पर्युषण पर्व ने कई जीव को केवलज्ञानी बनाया है, शरीर को तपाकर आत्मा को शुद्ध करने का यह पर्व है – परम पूज्य प्रशम सागर जी म.सा.


धमतरी। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि चातुर्मास काल जब से प्रारंभ हुआ है तब से अपने कल्याण की भावना भी जीवन में आया है। साथ ही आज वो दिन भी आ गया जिसका हम सभी को उपकार था। आज से परम उपकारी पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का प्रारंभ हो रहा है। ये पर्व हम सभी को उपकृत करने वाला है। इस पर्व में विशेष आराधना साधना करके जीवन को सार्थक किया जा सकता है। इस पर्व तिथि में हम अपने उद्धार का मार्ग प्रशस्त कर सकते है। जब जब पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आता है जिनशासन को मानने वाले सक्रिय हो जाते है और आत्मविकास के लिए आराधना करने लग जाते है। हम सभी को इस पर्व से जुडऩा है। शास्त्र कहते है पर्वाधिराज पर्युषण पर्व ने कई जीव को केवलज्ञानी बनाया है। ये पर्व शरीर को तपाकर आत्मा को शुद्ध करने का है। जिनशासन में पर्व को स्पीड ब्रेकर के जैसा माना गया है। इन पर्व के दिनों में हमे अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या को रोककर कुछ ऐसा कार्य करना है जिससे आत्मा का विकास हो सके। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व एक लोकोत्तर पर्व है। इस पर्व के माध्यम से हमे आत्मा के विकास के लिए साधना करना है। यह पर्व आत्मा से परमात्मा बनने की साधना का पर्व है। इस पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में जीवन में बाहर से कुछ परिवर्तन हो या नहीं किंतु अंदर में परिवर्तन जरूर होना चाहिए। इस पर्व के माध्यम से अपने केंद्र को बदलना है। अब तक हम शरीर के लिए जीते थे अब आत्मा के लिए जीना है। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के आठ दिनों में हमे केवल और केवल स्वयं के लिए अर्थात अपनी आत्मा के लिए जीना है। इन आठ दिनों में भोग को छोड़कर योग से जुडऩा है। इस पर्व में दुर्गुणों से दूर हटकर सद्गुणों के साथ जीना है। साधन, सामग्री और संपत्ति के लिए जीना छोड़कर सिद्ध होने के लिए साधना के साथ जीना है। अपनी हर क्रिया को आत्मा से जुडऩे वाला बनाना है। परमात्मा के गुणों को देखते देखते उनके जैसा ही गुण मुझमें आ जाए ऐसा विचार होना चाहिए। परमात्मा के जीवन चरित्र को सुनते हुए अपने चरित्र को देखने का और परिवर्तन करने का प्रयास करना है। इस पर्व में आराधना अनाहरी पद को प्राप्त करने के उद्देश्य से करना चाहिए। स्वयं से स्वयं तक पहुंचने के लिए आराधना करना है। शास्त्रों में इस पर्व का अर्थ बताया गया है पर्युषण दो शब्दों से बना है। परि अर्थात चारों ओर से उसन का अर्थ है समीप रहना। अर्थात चारों ओर से आत्मा के समीप रहने का प्रयास करना। और चार गति के भटकन से दूर होने का प्रयास करना। पर्युषण का एक और अर्थ है। परि अर्थात चारों ओर से। और उशन का अर्थ है जलाना। अर्थात अपने चारों ओर जो पाप और कषाय आदि से हम घिरे हुए है। उसे जलाना या नष्ट करना। ताकि आत्मा को स्वच्छ और शुद्ध किया जा सके।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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