कम से कम इतना प्रयास जरूर करें कि हमारे कारण किसी का दिल न दुखे- श्री विशुद्ध सागर जी म. सा.
धमतरी। युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज साहेब ने आज के प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि अपने मन को शांत करने का श्रेष्ठ माध्यम ध्यान है। अपने आत्मा के अंदर देख कर सोचना कि मेरे ही अंदर सिद्ध प्रभु स्वयं विराजमान है अब मुझे इनका ही हर क्षण ध्यान करना है ताकि इस संसार से मुक्ति मिल सके। तेरी प्रभुता इतनी अदभुत है कि दूसरो के बिना कुछ भी नही चलता। जबकि तेरा सबकुछ तेरे ही अंदर है। अब अपनी प्रभुता का उपयोग अपने आत्म लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करना है। जिन्हे सत्य का ज्ञान है वो कभी भी असत्य को सत्य नही मानते। हमे विचार करना है की क्या हम भी सत्य को असत्य तो नही मान रहे है। सत्य मतलब शाश्वत, सच्चाई, निरंजन, वास्तविक। ज्ञानी कहते है जो सत्य है उसे हमे स्वीकार करना चाहिए। हमे सत्य को जानना भी है और मानना भी है। सत्य को समय निकलने से पहले ही समझना है। सही समय पर सत्य को न समझने वाला नासमझ कहलाता है। इस जीवन का अटल सत्य है मृत्यु। मृत्यु न समय देखती न मुहूर्त। जब जिसका समय पूर्ण हो जाता है उसे तत्काल ही जाना ही पड़ता है। इस जीवन में हमे इतना पुरुषार्थ करना है की हम इस दुनिया से हंसते हंसते जाए। जो इस संसार से रोते रोते जाता है उन्हे आने वाले भव में भी रोते रोते जीवन व्यतीत करना पड़ता है। जबकि हंसते हंसते जाने वाले का मृत्यु भी महोत्सव बन जाता है। आने वाले भव में भी उसका जीवन सुखी बनता है।
जीवन का केवल एक ही सार है मृत्यु। ज्ञानी कहते है मृत्यु को अच्छे से जानने वाला जीवन को अच्छे से जीना जान जाता है। समझदारी पूर्वक जीवन जीने वाला वास्तव में मृत्यु को समझ चुका होता है। जैसे एक खिला हुआ फूल मुरझाएगा यह सत्य है उसी प्रकार हमे ये संसार चाहे कितना भी प्यारा क्यों न हो। पर सच यही है कि इस संसार से एक दिन सभी को जाना है। हमारे मन में असत्य का इतना मैल भरा हुआ है कि हम सत्य की स्वीकार ही नही कर पा रहे है। इस नाशवान संसार से हम कुछ भी साथ लेकर नहीं जा सकते। हमारे साथ केवल हमारे कर्म ही जायेंगे। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करना चाहिए। आत्मा के विकास के लिए साधना के राह की आवश्यकता होती है। साधना से मुक्ति की मंजिल मिल सकती है। साधना के लिए पहले सत्य को जानना और समझना पड़ता है। इस संसार में कम से कम इतना प्रयास जरूर करना चाहिए कि हमारे कारण किसी का दिल न दुखे।