दर्री में वर्षों बाद गूंजा रंगमंच:मौरध्वज (शेर का भोजन) नाटक का हुआ भव्य मंचन
पुराने व नए कलाकारों की सहभागिता से ग्रामीण संस्कृति को मिला नया आयाम

स्वतंत्र बाल समाज नाट्य मंडली दर्री द्वारा आयोजित भव्य नाट्य मंचन मौरध्वज उर्फ शेर का भोजन ने न केवल दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि ग्रामीण सांस्कृतिक चेतना को भी एक नया जीवन दिया।यह नाटक प्रसिद्ध नाटककार नथाराम गौड़ शर्मा हाथरस (उत्तर प्रदेश) द्वारा रचित एक संगीत प्रधान पौराणिक नाट्य कृति है, जिसमें वीर रस, रौद्र रस, हास्य, विलाप आदि भावों को विभिन्न शास्त्रीय और लोक संगीत की तर्ज़ों में प्रस्तुत किया गया। नाटक मे भावनाओं की गहराई को दर्शाया गया, जिससे मंचन अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ा। यह शैली भारत की समृद्ध नाट्य परंपरा की एक अनुपम झलक है, जिसे दर्री की नाट्य मंडली ने बड़े सम्मान और कला-निष्ठा के साथ सहेज कर प्रस्तुत किया।
कलाकारों की प्रस्तुति और सांस्कृतिक समन्वय
इस आयोजन की खास बात यह रही कि इसमें पुराने अनुभवी कलाकारों और नई पीढ़ी के नवोदित कलाकारों ने कंधे से कंधा मिलाकर अभिनय किया। इस समन्वय ने मंच को न सिर्फ जीवंत किया, बल्कि गाँव के भीतर कला और सांस्कृतिक चेतना को भी पुनर्जीवित किया।मुख्य कलाकारों में चैन सिंह चक्रधारी, अशोक साहू, दुर्योधन साहू, राजकुमार चक्रधारी, मनोहर चक्रधारी, रविशंकर कुंभकार, नारद, महेंद्र, चुम्मन खोमेश, गोलू शामिल रहे.संगीत पक्ष की आत्मा दशरथ साहू, भीष्म शुक्ला, शंकर दास मानिकपुरी, प्रकाश चक्रधारी और गीतेश चक्रधारी जिनके निर्देशन में संगीत ने मंचन को सजीव कर दिया।मंच के पीछे पर्दे की बागडोर नंदकुमार कुंभकार, उमेंद्र, इंद्रावण, सहदेव, खूबलाल साहू, माखन यादव, घनश्याम चक्रधारी, राकेश, उपेन्द्र, राहुल ने संभाली
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में दयाराम साहू (पूर्व महामंत्री, प्रदेश साहू संघ),हिमांशु शेखर साहू (सरपंच), निरंजन साहू (उपसरपंच),अर्जुन दास, ललित शुक्ला एवं समस्त पंचगण मौजूद रहे.
80 वर्ष की उम्र में भी अभिनय का जज़्बा
विशेष उल्लेखनीय प्रस्तुति रही 80 वर्षीय दशरथ साहू की, जिन्होंने बिना चश्मे के टीका कार की भूमिका निभाई। उन्होंने पुरानी कवि शैली में संवाद प्रस्तुत कर दर्शकों को भावविभोर कर दिया और यह संदेश दिया कि कला की कोई उम्र नहीं होती।

