दीपावली पर्व पर घरों, प्रतिष्ठानों को दीयों से जगमग करने चल रहे कुम्हारों के चाक
लक्ष्मी पूजा के लिए दीयों के साथ ही ग्वालिन देवी की भी बनाई जा रही प्रतिमा
सुबह से लेकर रात तक दीये व अन्य सामान बेचने खुले आसमान के नीचे बैठे रहते है परिवार सहित कुम्हार
धमतरी। दीपावली पर्व नजदीक है पर्व को लेकर लोगों द्वारा तैयारियां की जा रही है। कुम्हार भी दूसरों की दीपावली में उनके घरों प्रतिष्ठानों को रोशनी से जगमग करने दिन रात मेहनत कर रहे है। दूसरों के घर को रोशन कर कुम्हार भी अपनी दिवाली खुशियों से मना पाते है। बता दे कि दीपावली पर्व हिन्दूओं का सबसे बड़ा पर्व है। पांच दिनों तक चलने वाला यह पर्व अपने संग खुशियां व उमंग लाता है। इस पर्व को दीपोत्सव भी कहते है। इस पर्व पर पूरे पांच दिन घरों प्रतिष्ठानों को दीप जलाकर रोशन किया जाता है। हमारे घरों प्रतिष्ठानों को रोशन करने कुम्हार मेहनत कर रहे है। चूंकि दीपावली पर्व को अब कुछ ही दिन शेष रह गये है। इसलिए लगातार दीयों की मांग बनी हुई है। और जैसे -जैसे पर्व नजदीक आते जायेगा वैसे वैसे दीयें और तेजी से बिकते जायेंगे। इसलिए कुम्हार परिवार सहित दिये बनाने रोजाना अपनी चॉक घुमा रहे है। बता दे कि शहर के ब्राम्हण पारा वार्ड के अन्तर्गत कुम्हार पारा आता है। कुम्हार पारा में अधिकांश कुम्हार निवासरत है जो कि पुश्तैनी कार्य में पीढ़ी दर पीढ़ी लगे हुये है। आज भी कई ऐसे परिवार है। जिनके आय का जरिया एक मात्र पुश्तैनी कुम्हारी कार्य है। इसलिए ऐसे परिवारों की दीपावली हमारे द्वारा जलाये गये मिट्टी के दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों के खरीददारी से खुशियों से भर सकती है। वर्तमान में दीये बनाने अल सुबह से कुम्हार जुटे रहते है। कुम्हारों ने बताया कि यदि पूरा दिन काम किया जाये तो 800-1000 दीये इलेक्ट्रानिक चॉक से बनाया जा सकता है। यह कुशल कारीगर द्वारा बनाया जा सकता है। दीपावली पर्व पर वर्तमान में 20 रुपये दर्जन के हिसाब से दीये बेचे जा रहे है। मंहगाई के इस दौर में यह भी लोगों को ज्यादा लगता है। लेकिन इसके पीछे लागत और मेहनत पर ध्यान नहीं दिया जाता लोग आज भी भारी मोलभाव करने से बाज नहीं आते। इसके अतिरिक्त कुम्हारों द्वारा दीपावली पर लक्ष्मी पूजा हेतु ग्वालिन देवी का निर्माण भी किया जा रहा है। ग्वालिन देवी की पूजा बगैर दीपावली पर्व संभव नहीं है। हालांकि कुम्हारों द्वारा महीने दो महीने पहले से ही ग्वालिन देवी की प्रतिमा बना लिया जाता है। लेकिन कई कुम्हार अभी भी ग्वालिन देवी की प्रतिमा का निर्माण कर रहे है। बता दे कि बाजार में 40-50 रुपये लेकर ग्वालिन देवी का प्रतिमा बिकती है। मिट्टी के सामान बनाने के लिए ही कुम्हारों को मेहनत और सामाग्री जुटानी नहीं पड़ती बल्कि इसे बेचने में भी भारी मेहनत करनी पड़ती है। ईतवारी बाजार, घड़ी चौक, के पास रामबाग व अन्य स्थानों पर कुम्हार परिवार सहित सुबह से लेकर रात तक बैठे रहते है। इसके बाद भी कई बार उन्हे अपनी मेहनत के अनुसार मेहताना नहीं मिल पाता।
इस प्रकार बनाये जाते है मिट्टी के दीये
ज्ञात हो कि मिटट्ी के दीये बनाने के लिए कुम्हारों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। एक पूरी प्रक्रिया को सम्पन्न करना पड़ता है। सबसे पहले चिकनी काली मिट्टी लाना पड़ता है। पहले मिट्टी तालाबों आदि से मुफ्त में मिल जाया करती थी। लेकिन अब मिट्टी खरीदनी पड़ती है। मिट्टी लेने के बाद मिट्टी को पानी में घोल कर पेस्ट बनाकर कंकड़, पत्थर व अन्य मिलावटी चीजों को अलग किया जाता है। उसके बाद साफ गीली मिट्टी को चॉक पर रखा जाता है। इसके बाद चॉक घुमाककर हाथों से दीयों को आकार दिया जाता है। फिर दीये को सुखाया जाता है। फिर रंग कर आग से पकाया जाता है। इलेक्ट्रानिक चॉक से तो बिजली से चॉक घूमता है जिनके पास पुरानी चाक है उन्हें हाथ ही चॉक को घूमाना पड़ता है।
इलेक्ट्रानिक, सेंसर वाले दीये भी उपलब्ध है बाजार में
बता दे कि आधुनिकता के इस दौर में कुम्हारों की मेहनत पर पानी फेरने कई आधुनिक उपकरण बाजार में उपलब्ध है कई प्रकार के दीये जैसे बैटरी से चलने वाले दीये और दीये में पानी भर कर सेंसर के माध्यम से जलाने वाली दीयें बिक रहे है। इनके दाम भी कम होते है। इसलिए लोग मिट्टी के दीये तो परम्परानुसार खरीदते ही है। लेकिन कुछ मात्रा में इन आधुनिक दीयों को भी खरीदते है। जिससे कंही न कंही कुछ हद तक कुम्हारों का व्यापार प्रभावित होता है।
आधुनिकता से मिट्टी के सामानों की डिमांड हुई कम
बता दे कि पहले लोग दीपावली पर्व पर घर के हर हिस्से में दीपो के माध्यम से ही रोशनी करते थे। लेकिन पिछले कई वर्षो से घरों दुकानों में एलईडी लाईटों की झालर लगाये जाते है ऐसे में दीपों की संख्या घटी है। वहीं फ्रीज व धातुओं के बर्तनों के कारण मटके व मिट्टी के बर्तनों की डिमांड घटी है। लेकिन इस आधुनिक सामान से होने वाले नुकसान से भी लोग जागरुक हो रहे है। ऐसे में लोग पुराने जमाने की तरह ही मिट्टी के बर्तनों व सामानों की महत्ता समझने लगे है।
अलग स्थान निर्धारित करने की है आवश्यकता
शहर में त्यौहारों व विशेष मौकों पर पर्व विशेष सामान बेचने अघोषित बाजार घड़ी चौक के पास शनि मंदिर के सामने लग जाता है। एक तो त्यौहारी भीड़ के चलते यातायात का दबाव रहता है। उस पर सड़क के बीच अपने सामान को बेचने की मजबूरी के चलते खरीददारी से यातायात और बाधित होता है। खुले आसमान के नीचे परिवार सहित कुम्हार दिन भर सामान बेचने बैठे रहते है। यदि घड़ी चौक के आसपास ही यदि बरसात धूप आदि से राहत प्रदान करते हुए पसरा लगाने या सामान बेचने की सुविधा युक्त जगह मिल जाये तो कुम्हारों को सुविधा तो होगी ही साथ ही त्यौहारी भीड़ के दौरान यातायात कम बाधित होगा।