श्राप के कारण सीता को अपने पति श्रीराम से दूर जाकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहना पड़ा – संत रामस्वरुपाचार्य
देवपुर डोगेश्वर धाम में हुआ श्रीराम कथा का आयोजन
मूलचंद सिन्हा
कुरुद. ग्राम देवपुर डोगेश्वर धाम में तिलक व नीलकंठ साहू परिवार द्वारा आयोजित श्रीराम कथा मे कामदगिरी से पधारे संत रामस्वरुपाचार्य ने कहा कि रामायण में श्रीराम और सीता के वियोग की कहानी सभी जानते हैं। वनवास से लौटने के बाद एक धोबी के कहने पर सीता को राम से अलग रहना पड़ा था। क्या आपको पता है कि ये सब एक तोते की वजह से हुआ था, जिसने सीता को अपने पति का वियोग झेलने का श्राप दिया था। बताया गया है कि सीता जब छोटी थीं, तब अपनी सखियों के साथ बाग में खेल रही थीं। तभी उनकी नजर तोते की एक जोड़े पर पड़ी। दोनों आपस में कुछ बातें कर रहे थे। सीता जाकर उनकी बातें चुपके से सुनने लगीं। वह जोड़ा कह रहे थे कि भविष्य में राम नाम का एक प्रतापी राजा होगा, जिसका विवाह सुंदर राजकुमारी सीता से होगा। जब सीता ने उनसे पूछा कि ये सब उन्हें किसने बताया तो तोते ने कहा कि उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के मुंह से ये बातें सुनीं। वे अपने आश्रम में शिष्यों को यह बता रहे थे। तब सीता ने कहा कि जिस राजकुमारी की वह बात कर रहे हैं, वो मैं हूं। ये सुनकर तोते घबरा गए। उन्होंने कहा कि हम उड़कर कहीं दूर जा रहे हैं और कभी यहां नहीं आएंगे। सीता ने उन्हें रोक दिया और कहा कि वह उन्हें अपने साथ रखेंगी। इस पर तोतों ने कहा कि वे आजाद पंछी हैं और किसी पिंजरे में बंद होकर नहीं रह पाएंगे।
सीता ने कहा कि वह और भी बातें सुनना चाहती हैं, इसलिए उन्हें नहीं जाने देगी। तोतों की जोड़ी ने खूब विनती की मगर सीता टस से मस नहीं हुई। बाद में सीता ने नर तोते से कहा कि ठीक है वह उसे छोड़ रही है। मगर मादा तोते को वह अपने पास ही रखेगी। नर तोते ने कहा कि उसकी पत्नी गर्भवती है, ऐसा न करें। दोनों को साथ रहने दें। सीता ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने नर तोते को तो छोड़ दिया, मगर मादा तोते को अपने साथ महल में बंदी बना लिया। नर तोता अपने साथी का वियोग सह नहीं सका। उसने सीता को श्राप दिया कि जैसे आज वह अपने जीवनसाथी का वियोग सह रहा है, उसी प्रकार सीता भी एक दिन अपने पति का वियोग सहेंगी। कुछ समय बाद तोते ने अपने प्राण त्याग दिए। सीता को जब पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ। मगर अब बहुत देर हो चुकी थी। कहते हैं कि इसी श्राप के कारण सीता को अपने पति श्रीराम से दूर जाकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहना पड़ा। दरअसल, श्रीराम रावण का वध करके 14 वर्ष का वनवास खत्म कर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे। उसके बाद कुछ लोग सीता की पवित्रता पर सवाल उठाने लगे। एक धोबी ने भरी सभा में सीता की निंदा की। इसके बाद श्रीराम ने प्रजा को ध्यान में रखते हुए अपनी पत्नी सीता को महल से बाहर निकालकर जंगल में रहने का आदेश दिया। उस समय सीता गर्भवती थीं। उन्होंने वाल्मीकि के आश्रम में ही अपने पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया। कहते हैं कि जिस धोबी के कहने पर श्रीराम को अपनी पत्नी को छोडऩा पड़ा, वो पिछले जन्म में वही तोता था जिसने सीता को श्राप दिया।