राम से अटूट रिश्ता और वनवास काल के दौरान समय बिताने के बाद भी धर्म व पर्यटन की दिशा में नहीं हो पाया सिहावा का विकास
सप्त ऋषियों का है आश्रम, सभी की पौराणिक काल में रही है बड़ी मान्यता लेकिन सुविधाओं को तरस रहे आश्रम
आशीष मिन्नी
धमतरी । आज पूरा देश, विदेश राम नाम में डूबा हुआ है। अयोध्या में राममंदिर निर्माण और भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर न सिर्फ अयोध्या में बल्कि देश के हर एक कोने जहां किसी भी प्रकार से भगवान जुड़े थे या उनका आगमन हुआ था चर्चा में है। लेकिन धमतरी जिले के सिहावा क्षेत्र से श्रीराम का अटूट रिश्ता होने, वनवास काल के दौरान आगमन और महत्वपूर्ण समय व्यतीत करने के बाद भी सिहावा क्षेत्र धर्म व पर्यटन के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है।
यहां के सिहावा पर्वत मेें ही महानदी का उद्गम स्थल है। जो कि न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों के लिये भी जीवनदायिनी नदी है। उक्त क्षेत्र में सप्त ऋषियों के आश्रम है जो कि पर्वत पर बसे है यहां हर एक आश्रम और ऋषियों का पौराणिक काल में उल्लेख है। ऋषियों की पौराणिक काल में बड़ी मान्यतायें थी। आज भी आश्रम में ऋषियों की पूजा अर्चना होती है। साथ ही विशेष मौको पर विविध आयोजन भी होते है। मुचकुंद ऋषि के संबंध में पौराणिक कथा है कि द्वापर युग में राक्षस कालयवन मुचकुंद ऋषि की दृष्टि पडऩे से भष्म हुआ था पहाड़ में आज भी यह गुफा मौजूद है।
लोक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने अपना अधिकांश समय इस स्थान पर सभी सात ऋषियों से मिलने और परामर्श करने में बिताया था। सिहावा दिव्य महानदी नदी का उद्गम स्थल है, जिसे छत्तीसगढ़ और ओडिशा में पवित्र माना जाता है। इसी प्रकार श्रंृगी ऋषि, अगस्त, शरभंग, अंगीरा, मुचकुंद, वाल्मिकी, कर्क, गौतम ऋषि आश्रम सिहावा क्षेत्र में स्थित है। लेकिन सिर्फ महानदी के उद्गम स्थल सिहावा पर्वत को ही ख्याति प्राप्त हो पाई लेकिन पर्यटन का विकास यहां भी ठीक से नहीं हो पाया है। लेकिन अन्य आश्रमो की बात करे सभी ऋषियों के आश्रमों के पहाड़ों में कई पदचिन्ह, आश्चर्यजनक पौराणिक किदवंती आस्था का केन्द्र है लेकिन सीढिय़ों का निर्माण तक इन आश्रमो में नहीं हो पाया है। ख्याति और सुविधाओं के आभाव में बड़ी पौराणिक मान्यातायें रखने वाले सप्त ऋषियों का आश्रम गुमनामी में अब तक रहा है। इसलिए यहां के पुजारियों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर नाराजगी है। उनका कहना है कि यदि सही तरीके से विकास किया जाता तो आश्रमों व राम आगमन सहित अन्य पौराणिक काल की घटनायें जग में प्रचलित होती और सिहावा क्षेत्र पर्यटन का केन्द्र बन सकता था।
सप्त ऋषियों में वरिष्ठ थे ऋषि अंगीरा
सिहावा के ग्राम रतावा में स्थित अंगीरा ऋषि आश्रम के बाल योगी मुकेश बाबा ने बताया कि सप्त ऋषियों में ऋषि अंगीरा सबसे वरिष्ठ थे। त्रेता युग में भगवान श्री राम वनवास काल के दौरान अंगीरा आश्रम आये थे। यहां उन्होने कंदमूल खाया। विश्राम किया। ऋषि अंगीरा ने श्रीराम को हर संभव मद्द की बात कही थी। बालयोगी मुकेश बाबा ने आगे बताया कि पौराणिक काल में अग्नि देव ने यहां 1000 साल की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर ऋषि अंगीरा ने अग्नि देव को अग्नि का देवता बनाया था। पूर्व में इसे नवखंड पर्वत भी कहा जाता था। अभी भी यहां सतयुग का वास है। पूर्णमासी पूर्णिमा को आवाजे सुनाई देती है। किदवंती है कि यहां भगवान श्री कृष्ण भी आये थे। और द्वापर युग में इसे संदीपन पर्वत कहा जाता था। यहां श्री कृष्ण ने पाशुपात विद्या सीखी और भगवान परशुराम के माध्यम से सुदर्शन चक्र धारण किया था। यहां विशेष मौके पर मेले व हवन पूजन का आयोजन होते रहता है।
ऋषि अगस्त ने विंध्याचल पर्वत को झुकाकर किया था जगत का कल्याण
हरदीभाटा स्थित ऋषि अगस्त आश्रम के पुजारी नाथनराम ने बताया कि पौराणिक काल में ऋषि अगस्त ने अपने तपोबल से विध्यांचल पर्वत को झुकाया था। किदवंती प्रचलित है कि विध्यांचल पर्वत का आकार बढ़ते ही जा रहा था। इससे सूर्य की रोशनी नीचे भूमि पर नहीं आ पा रही थी। इससे जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। ऐसे में जब देवताओं ने ऋषि अगस्त को इससे अवगत कराकर प्रार्थना की तो उन्होने विध्याचंल पर्वत पर जाकर उन्हें आदेश दिया कि जब तक मैं वापस न लौटू तब तक झुके ही रहना इस प्रकार विध्याचंल पर्वत वहीं थम गया। श्रीराम वनवास काल के दौरान यहां आये भूखे, प्यासे रहने की अतिबला विध्या सीखी। यहां आश्रम में कुआ रुपी बावली है जिसके जल के सेवन से रोग दूर होते है। यहां आश्रम के उपर पर्वत पर भगवान राम ने महालक्ष्मी की आराधना की भी थी। यहां भी विशेष मौको पर विशेष पूजा, अर्चना के साथ मेले का भी आयोजन होता है।