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पॉलीथीन में फेंकी जा रही खाद्य सामाग्री, निगल कर हो जाती है गायो की मौत

पॉलीथीन और सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध का नहीं हो पा रहा पालन

प्रशासन की नाकामी और लोगों की लापरवाही से गायो की जान खतरे में
धमतरी। भारत सरकार द्वारा पूर्व में ही प्लास्टिक के कई प्रकारों पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन इसके पालन ठीक से नहीं हो पाता इसलिए प्रतिबंध के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है। और यह प्लास्टिक व पॉलीथीन जानवरों के लिए भी घातक जानलेवा बन रहा है। बता दे कि जिले में आज भी प्लास्टिक से बने पॉलीथीन का उपयोग धड़ल्ले से होता है। इनमें कई ऐसे प्रकार है जो प्रतिबंधित है। इनका इस्तेमाल घरो दुकानों आदि में रोजाना हम करते है। सामान लेने देने के साथ ही कई कार्यो में पॉलीथीन का उपयोग होता है। कुछ लोगों द्वारा खाद्य सामाग्रियों को पॉलीथीन में डालकर फेंक दिया जाता है। इसे गायों द्वारा खाया जाता है। खाद्य सामाग्री के साथ ही कई बार गाय पॉलीथीन भी निगल जाती है जो कि उनके पेट में जाकर फंस जाती है। और यही उनके मौत का कारण बन जाता है। प्रशासन की नाकामी और लोगों की लापरवाही से गायो की मौत हो जाती है। इस गंभीर खतरे से बेजुबानों को बचाने विशेष प्रयास न तो प्रशासन कर रही है और न ही ऐसी संस्थायें जो गायो की सेवा करने उन्हें गौमाता मानने की बात कहते है। शहर के कूड़ेदानों में अक्सर पॉलीथीन में सामाग्रियों फलों सब्जियों के छिलके आदि को फेंका जाता है। इस पर रोक लगाने प्रत्येक नागरिक को जागरुकता का परिचय देना होगा।


यह होता है गायो द्वारा पॉलीथीन निगलने के बाद
पशु चिकित्सको के मुताबिक, गाय व अन्य मवेशी कच्चा खाना खाते हैं। पाचन के लिए उनका पेट चार हिस्सों में विभाजित होता है। इनमें रूमन और रेटीकुलम, ओमेजन और एबोमेजम हैं। रूमन की क्षमता 40 किलो होती है। इसमें खाना स्टोर होता है। बाद में गाय इसे वापस लेकर चबाती है। रूमन और रेटीकुलम में यह पॉलिथीन फंस जाती है। इससे पेट फूल जाता है, इससे टिंपनाइटिस हो जाती है। पेट फूलने से सांस लेने में समस्या होती है, गैस न निकलने से गाय की मौत तक हो जाती है।
पर्यावरण के घातक है प्लास्टिक कचरा
पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि यह लंबे समय तक पर्यावरण में रहता है और सड़ता नहीं है, अंतत: माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है, जो पहले हमारे खाद्य स्रोतों और फिर मानव शरीर में प्रवेश करता है। अधिकांश प्लास्टिक नष्ट होने वाले या बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं। इसके बजाय वे धीरे-धीरे छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक से पर्यावरण अव्यवस्थित होता है। अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों का भी भारी प्रभाव पड़ता है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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