8 माह पारिवारिक कार्यों में व्यस्त रहे अब 4 माह अपनी आत्मा के लिए लगाना है – लय स्मिता श्री जी म.सा.
जब जीवन में पुण्य का उदय होता है तभी जिनवाणी सुनने का अवसर मिलता है - अमिवर्षा श्री जी म.सा.
धार्मिक कार्यों के लिए कभी किसी निमंत्रण का इंतजार नही करना चाहिए – भव्योदया श्री जी म. सा.
आज से चातुर्मास पर्व का हुआ शुभारंभ
धमतरी । आज से चातुर्मास पर्व का प्रारंभ हो गया है। स्वागत में श्रावक श्राविकाओं ने पौषध व्रत आदि किया। 12 पर्व में पहला पर्व है चातुर्मास। परम पूज्य भव्योदया श्री जी म. सा. ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि चातुर्मास आत्म निरीक्षण, स्व अवलोकन का अवसर है। जीवन में 3 चीजे होनी चाहिए पहला है लगाव – देव गुरु धर्म के प्रति हमारा लगाव होना चाहिए। दूसरा सहभागिता – किसी भी धार्मिक कार्यों के लिए कभी किसी निमंत्रण का इंतजार नही करना चाहिए। धार्मिक कार्यों में हमारी सहभागिता हमेशा होनी चाहिए। तीसरा है समझौता- जैसे हम परिवार आदि में समय समय पर समझौता करते है वैसे ही धार्मिक कार्यों के लिए भी समय समय पर समझौता करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। चातुर्मासिक प्रवचन जो संस्कृत में था उसे हिंदी में इसलिए किया गया ताकि हम उसे श्रवण कर, आचरण में लाकर अपने जीवन को सफल बना सके। श्रावक को सामान्य कर्तव्य में तुच्छ फल अनजाना फल का त्याग इन दिनों में करना चाहिए। बाजार की वस्तुओ का भी त्याग करना चाहिए। श्रावक के विशेष कर्तव्य में बताया गया कि जिस प्रकार आभूषण से शरीर का श्रृंगार होता है उसी प्रकार सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रभुपूजन, ब्रम्हचर्य व्रत के पालन से आत्मा का श्रृंगार होता है। इस चातुर्मास में हमे अधिक से अधिक आत्म के उत्थान के लिए पुरुषार्थ करना है। परम पूज्य अमिवर्षा श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि जब जीवन में जबरदस्त पुण्य का उदय होता है तभी जिनवाणी सुनने का अवसर मिलता है। जैन दर्शन के अनुसार हम आठ में से सात कर्मो का बंध हर समय द्रव्य तथा भाव से करते रहते है। आज का ये दिन हमे प्रेरणा दे रहा है की अपने मन को काबू में रखना है। जब तक जीवन में कुटिलता, कषाय, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष है तब तक जीवन में जिनवाणी का स्वाद नही आ सकता। परम पूज्य लय स्मिता श्री जी म.सा. ने कहा कि चातुर्मास हमे जगाने आया है। 8 माह हम पारिवारिक, घरेलू कार्यों में व्यस्त रहे। अब ये 4 माह अपनी आत्मा के लिए लगाना है। आज चातुर्मास का प्रवेश भगवान पाश्र्वनाथ की क्षत्रछाया में और दादा गुरुदेव की निश्रा में हो गया है।