धमतरी शिया समाज ने इमाम हुसैन पर हुए जुल्म की याद में मनाया मोहर्रम
रोज ए आशूरा को उठाया गया ताजिया
धमतरी । इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मोहर्रम को दुनिया भर के शिया मुसलमानों द्वारा शोक के रूप में मनाया जाता है। इस महीने का दसवां दिन आशूरा कहलाता है, आशूरा के दिन की विशेष नमाज अदा की जाती है। इस दिन का विशेष महत्व सभी मुस्लिमों के बीच है। इसी सिलसिले में शहर के नवागांव वार्ड स्थित इमामबाड़ा में 7 जुलाई ब मुताबिक़ 1446 हिजरी के मोहर्रम की चांद रात से मजलिसों (शोक सभा) का सिलसिला शुरू हुआ जो 19 जुलाई 2024 तक जारी रहेगा। इस दौरान खतीब ए मजलिस जनाब सैयद जुल्फिकार हुसैन जैदी ने इन तमाम मजलिसों से खिताब फरमाते हुए बताया कि सन् 61 हिजरी के मोहर्रम की 10 तारीख रोज़ ए आशूरा को करबला के सेहरा में यज़ीद मलाऊन के हुक़्म के मुताबिक एक बड़ी फौज ने पैगंबर हजऱत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन अ.स. व उनके छोटे भाई हजरत अब्बास अ.स., व बेटे अली अकबर अ.स, अली असगर अ.स. समेत 72 साथियों को 3 दिन का भूखा प्यासा क़त्ल दिया था। इतना ही नहीं सबको कत्ल करने के बाद इमाम हुसैन के घर की महिलाओं बच्चों को कैद कर लिया। जिसकी याद में हर साल मोहर्रम में शिया समुदाय व हर इंसाफ पसंद इंसान चाहे वो किसी भी धर्म का हो वो इन दिनों शोक में डूब जाता है। यजीद व उसके साथियों द्वारा की गई इस आतंकी घटना के विरोध में मजलिसें (शोक सम्मेलन) आयोजित की जाती है, जिसमे इमाम हुसैन अ.स. व उनके परिवार समेत अन्य 72 साथियों पर हुए जुल्म की याद मनाई जाती है। इस दौरान करबला के 72 प्यासे शहीदों की याद में अजादारों द्वारा पानी-शरबत और खाना तक़सीम किया जाता है।
ताजिया उठाया गया
नवागांव वार्ड स्थित इमामबाड़े में बीते सालों की तरह इस साल भी 2 ताजि़ए आशुरे के दिन उठाए गए, ये ताजि़ए करबला स्थित इमाम हुसैन अ.स. के रौज़े (मज़ार) के प्रतीक के रूप में बनाए जाते हैं। इस दौरान नौहाख्वानी के साथ ही मातमदारी भी की गई। ज़ाकिर ए अहलेबैत जनाब सैयद जुल्फिकार हुसैन जैदी साहब ने बताया इमाम हुसैन के घराने पर बर्बरता से हुए जुल्म की याद में मोहर्रम के महीने में शिया अजादार काले कपड़े पहन कर शोक मानते हैं, इन दिनों काले कपड़े इसलिए भी शियों द्वारा पहने जाते हैं क्योंकि वे यजीद के द्वारा की गई आतंकी घटना पर अपना विरोध जताते हैं।