हमने अपनी आत्मा में विषय, कषाय और कर्मो को इतना मिला दिया है जिसके कारण अपनी मूल्यवान आत्मा की वास्तविकता से हम दूर हो रहे है -परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में कहा कि जिसके विवेक की आंखे न खुली हो उसकी आंखे बंद की बंद रहती है। हमने संसार में सब कुछ देखा लेकिन आज तक स्वयं को नहीं देख पाए इसलिए आजतक संसार में भटक रहे है। अगर सोने के साथ पीतल मिला कर अंगूठी बना दी जाए तो सोना अधिक होने के कारण उसे सोने की अंगूठी कहते है। लेकिन अगर उसी अंगूठी में पीतल की मात्रा अधिक हो जाए तो उसे पीतल की अंगूठी मानेंगे अर्थात उसका मूल्य कम हो जाता है। उसी प्रकार हमारी आत्मा भी है। हमने अपनी आत्मा में विषय, कषाय और कर्मो को इतना मिला दिया है जिसके कारण अपनी मूल्यवान आत्मा की वास्तविकता से हम दूर हो रहे है।
ज्ञानी भगवंत कहते है जो स्वयं दोष नहीं करता उसे दूसरो का दोष नहीं दिखता। अर्थात उसमें दोष दृष्टि नहीं होती। अर्थात हमे भी स्वयं को दोष मुक्त करते हुए अपने दोषदृष्टि को दूर करना है । स्वयं के दोष हटते ही गुणों का आना प्रारंभ हो जाएगा। और साथ ही दूसरो के गुण भी दिखेंगे। द्वेष अर्थात क्रोध एक ऐसा जहर है जो हमे तब तक दुखी करता है जब तक उसका एक अंश भी हमारे अंदर हो। इसी प्रकार जिसके हृदय में द्वेष होता है उसके हृदय में प्रेम कभी नहीं आ सकता। चिंतन करना है कि मेरा दोष और द्वेष ही मेरे दुख का कारण है । अगर हम परमात्मा से दूर है तो हो सकता है हमारा द्वेष ही इसका कारण है। हमने इस संसार में आकर सारे रिश्ते नाते प्राप्त कर लिए लेकिन विचार करना है कि क्या हम परमात्मा के परिवार का हिस्सा बन पाए।