दूसरो में अवगुण दिखना और स्वयं में केवल गुण दिखना भी एक अवगुण है – विशुद्ध सागर जी म.सा.
इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय चातुर्मास प्रवचन है जारी
धमतरी। इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय चातुर्मास प्रवचन जारी है। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि हमारी भावना ही हमारे भव का विनाश कर सकती है अर्थात हमे मुक्ति तक पहुंचा सकती है। जिस दिन परमात्मा से ऐसी प्रीति हो जाए जिसमें कोई राग द्वेष न हो उस दिन यह प्रीति ही मुक्ति का मार्ग बन जाएगा। अर्थात प्रीति हमेशा शाश्वत आत्मा के प्रति होनी चाहिए नाशवान शरीर के प्रति नहीं। संसार की अव्यवस्था को हमने बहुत दूर कर लिया अब प्रयास करना है मन की अव्यवस्था को दूर करने का। मन की अव्यवस्था दूर होते ही जीवन अपने आप व्यवस्थित हो जाएगा।
हम हमेशा दूसरो के दोष देखते है लेकिन विचार करना है कि क्या हमे किसी ने यह अधिकार दिया है कि हम उसके दोषों को देखे। हमे अपने दोषों को देखने के लिए दूसरो को अधिकारी जरूर बनाना चाहिए क्योंकि अपने दोषो को जानने और उसे दूर करने का अवसर मिल जाएगा। परमात्मा जो हमसे कभी कुछ नहीं चाहते उनके प्रति हमारा द्वेष दूर नहीं हो पा रहा है तो यह संसार जो सदा ही हमसे कुछ न कुछ चाहता है उनसे द्वेष कैसे दूर होगा। जैसे लम्बे समय के अंधकार को क्षणभर में रोशनी करके दूर किया जा सकता है उसी प्रकार स्वयं के दोषों को दूर करके अपनी आत्मा के अंधकार को दूर किया जा सकता हैं । जीवन से दोष, द्वेष और दूरी को समाप्त करने के लिए हमे गुण दर्शन को प्राप्त करना होगा। ज्ञानी भगवंत कहते है इस संसार के प्रत्येक पदार्थ में कुछ न कुछ गुण है लेकिन या तो हम उसे जानते नहीं या मानते नहीं। यही हमारी अज्ञानता है।
आज सुख के सारे साधन होते हुए भी अगर हम दुखी है तो उसका एक मात्र कारण स्वदोष को न देख पाना है। हमे गुण दर्शन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले गुणानुरागी बनना होगा। हमे परमात्मा जैसा बनने के लिए पहले परमात्मा के आचरण को अपने जीवन में लाना होगा। परमात्मा के गुणों को देखकर उनके प्रति अनुराग को बढ़ाकर गुणानुरागी बनना है। गुनानुरागी बनकर ही परमात्मा की तरह बन सकते है। दूसरो में अवगुण दिखना और स्वयं में केवल गुण दिखना भी एक अवगुण है। मै अवगुण का भंडार हूं और परमात्मा गुणों का भंडार है यही भावना हमे परमात्मा की तरह बना सकते है।