व्यक्ति संसार से चला जाता है लेकिन उसके शब्द हमेशा रहते है – विशुद्ध सागर जी म.सा.
चातुर्मास के तहत आज आमापारा स्थित धनकेशरी मंगल भवन में हुआ प्रवचन
धमतरी। आज चातुर्मास के तहत आमापारा स्थित धनकेशरी मंगल भवन में प्रवचन हुआ। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि संसार में सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव होना चाहिए। जिस व्यक्ति या वस्तु के प्रति जितना अधिक मोह रहता है वह हमे उतना ही अधिक दुखी करता है। व्यक्ति संसार से एक समय के बाद चला जाता है लेकिन उसके शब्द हमेशा रहते है इसलिए शब्दो का उपयोग भी सोच समझकर करना चाहिए।
संसार में सभी के साथ प्रेम पूर्वक रहना चाहिए। क्योंकि प्रेम के अभाव में मित्रता नही हो सकती। कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नही है। लेकिन फिर भी हम सामने वाले की गलती को भुलाकर अपने भाव और भव दोनो सुधार सकते है। और यही आत्म विकास का माध्यम है। व्यक्ति प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति को बदलना चाहता है बस स्वयं को छोड़कर। हमे कभी भी उपकारी के उपकार को नही भूलना चाहिए। साथ ही जो हमे हमारा दोष बताए उसे भी उपकारी मानना चाहिए क्योंकि अपने दोषों को दूर करके स्वयं को गुणी और गुणानुरागी बना सकते है।
किंतु व्यवहार में जो हमारा भला चाहते है अगर हम उसका भी बुरा चाहते है तो हमसे बड़ा कृतघ्न कोई नही हो सकता। ज्ञानी भगवंत कहते है अपकारी के अपकार करने पर भी उस पर उपकार का व्यवहार हमे परमात्मा के निकट ला सकता है। अपने आत्मा के ध्यान की महिमा को हम स्वयं ही समझ सकते है। अर्थात अपनी आत्मा का आनंद स्वयं ही ले सकते है। अपनी आत्मा का ध्यान करते करते परमात्मा बनने का प्रयास करना है।