परमात्मा नेमीनाथ के दीक्षा कल्याणक महोत्सव पर निकाली गई वरघोड़ा
धूमधाम से नाटक के माध्यम से मनाया गया महोत्सव, शामिल होने राजनांदगांव, रायपुर, नगरी ,बालोद से पहुंचे समाजजन
धमतरी। आज बाईसवें तीर्थंकर परमात्मा नेमीनाथ का दीक्षा कल्याणक महोत्सव बड़े धूमधाम से नाटक के माध्यम से मनाया गया। परमात्मा का दीक्षा वरघोड़ा श्री पाश्र्वनाथ जिनालय से प्रारंभ हुआ एवं घड़ी चौक होते हुए श्री आदिश्वर जिनालय में आकर समाप्त हुआ। पूरे बरघोड़ा के मध्य परमात्मा के दीक्षा कल्याणक के उपलक्ष्य में वर्षीदान दिया गया।
परमात्मा जब दीक्षा लेते है उससे एक वर्ष पूर्व इंद्र महाराज आकर परमात्मा से निवेदन करते है कि आपकी दीक्षा का समय निकट आ गया है। अत: आप वर्षीदान देना प्रारंभ करें। यह परंपरा आज भी चालू है। परमात्मा गिरनार पर्वत पर जाकर 1000 पुरुषो के साथ दीक्षा लेते है। दीक्षा के 54 दिन बाद परमात्मा का निर्वाण होता है। इस कार्यक्रम में शामिल होने राजनांदगांव, रायपुर, नगरी ,बालोद से संघ पधारे थे।
परमात्मा के पांच कल्याणक महोत्सव में दीक्षा कल्याणक चौथा कल्याणक है। दीक्षा लेते ही परमात्मा को मन: पर्यायज्ञान हो जाता है। उसके बाद अपने कर्मो का छय करते हुए परमात्मा को पांचवा केवल्य ज्ञान होता है। केवल ज्ञान के पश्यात परमात्मा समवशरण में विराजमान होकर देशना देते है। दीक्षा के 54 दिन के बाद परमात्मा का निर्वाण हो जाता है। जिसे निर्वाण कल्याणक महोत्सव कहते है।
उपरोक्त कार्यक्रम में भंवरलाल छाजेड़, विजय गोलछा, संजय लोढ़ा, शिशिर सेठिया, पारसमल पारख़, लूणकरण गोलछा, लक्ष्मीलाल लूनिया, प्रवीण संकलेचा, दीपक पारख, अशोक पारख, राहुल सेठिया, कुशल चोपड़ा, आरशी राखेचा, राकेश राखेचा, प्रतीक बेद, दर्शन बैद, राहुल पारख, सतीश बैद, हितेश चोपड़ा, मनीष पारख, ज्ञानचंद बैद, कुशल पारख सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।
परमात्मा के माता पिता के रूप में मनीषा मनोज कटारिया थे रथ में विराजमान
नेमीनाथ परमात्मा 24 तीर्थंकरों में बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर कहे जाते है। क्योंकि परमात्मा जब इच्छा न होते हुए भी माता पिता की आज्ञा पूर्ण करने के लिए अपने विवाह के लिए जा रहे थे। तब बारात के मध्य रास्ते में उन्हें पशुओं की करुण पुकार सुनाई देती है। तब वो सारथी को कहकर अपना रथ रुकवाकर उस ओर ले जाने कहते है जहां पर पशुओं को बांध कर रखा गया था। वहा जाकर सभी पशुओं को परमात्मा बंधन मुक्त कराते है। और वही से उनका बारात उनके दीक्षा वरघोड़ा में बदल जाता है। इसलिए परमात्मा आबाल ब्रम्हचारी कहलाते है। परमात्मा के माता के रूप में श्रीमती मनीषा कटारिया एवं पिता के रूप में मनोज कटारिया रथ में विराजमान थे। इंद्र के रूप में गौरेश जी शाह एवं इंद्राणी के रूप में मोना जी शाह रथ पर थे।
अहमदाबाद से पधारे श्री आशीष व उनकी टीम द्वारा स्थानीय कलाकारों से कराई जा रही प्रस्तुति
सभी कार्यक्रम परम पूज्य उपाध्याय प्रवर महेंद्र सागर श्री जी म.सा. एवं परम पूज्य अध्यात्म योगी मनीष सागर जी म.सा. के शिष्यरत्न युवा संत परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. आदि ठाना के सानिध्य में अहमदाबाद से आए आशीष भाई एवं उनकी टीम के कलाकारों एवं समाज के स्थानीय कलाकारों द्वारा कराया जा रहा है।