जब हम आचरण रावण जैसा करेंगे तो जीवन राम जैसा कैसे बनेगा – विशुद्ध सागर जी म.सा.
इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास प्रवचन है जारी
धमतरी। इतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास प्रवचन जारी है। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि जिंदगी परमात्मा से मिला अमूल्य उपहार है। ये कहीं खो न जाए इसका ध्यान रखना है। क्योंकि ये बार बार मिलने वाली नही है इसलिए इसे संभाल कर रखना है। संसार रूपी सागर को परमात्मा रूपी खेवैया के माध्यम से पार करना है। जीवन रूपी पतंग की डोर के टूटने से पहले मुझे अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है। हमे अपने जीवन को फूल जैसा कोमल बनाकर केवल खुशबू लुटाने का काम करना है। पत्थर जैसा बनाकर किसी का दिल नहीं दुखाना है। प्रयत्न पूर्वक प्रयास करने वाले को परिणाम कितना प्राप्त होगा ये उसके प्रयत्न पर निर्भर करता है। परमात्मा ने अपने प्रयासों से उतना परिणाम प्राप्त कर लिया है की अब और कुछ प्राप्त करने की जरूरत ही नही है। बस हमे भी इतना ही परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रयास करना है। कोई भी व्यक्ति जब क्रोध में होता है तो सबसे पहले उसका व्यवहार बदल जाता है। और व्यवहार के बदलते ही शब्द भी बदल जाते है। हम सदा उसके साथ रहना पसंद करते है जिसका व्यवहार आनंदकारी हो। हमे आचरण तो राम का पसंद आता है लेकिन हम आचरण रावण की तरह करते है। हमे विचार करना है जब हम आचरण अर्थात व्यवहार रावण जैसा करते है तो जीवन राम के जैसा कैसे बनेगा। आज हमारा संबंध भी दिखावटी हो गया है। जो दूर से सबसे अच्छा लगता है पास आते ही वह नापसंद हो जाता है। हमे दूसरो के अच्छे कार्यों और गुणों की अनुमोदना करना चाहिए। साथ ही अपने अवगुणों की आलोचना करना चाहिए।
श्रावक को हमेशा विवेक का ध्यान रखना चाहिए। हमारा विवेक ही हमे हमारे कर्तव्य का ध्यान कराता है। दूसरो के गुणों के देखकर आनंदित होने का भाव ही प्रमोदभाव कहलाता है। और हमारा प्रमोदभाव ही जिनशासन की प्रभावना में अभिवृद्धि कर रहा है । हमारे हृदय में भी देव, गुरु और धर्म के प्रति प्रमोदभाव होना चाहिए। उनके गुण , आचरणऔर त्याग को देखकर हमे भी आनंदित होते हुए अपने जीवन में इसे उतारने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञानी भगवंत कहते है की हमे अपने मन को इतना योग्य बनाना है की उसे हमेशा गुण ही दिखाई दे। और उसे अपने जीवन में लाने का प्रयास करे। हमे परमात्मा की तरह करुणा का भाव अपने जीवन में लाने का प्रयास करना है। इसके लिए दूसरो के साथ अपने विचारधारा को मिलाने की जरूरत है। राम और रावण दोनो हमारे अंदर है। जब हमारा आचरण गलत होता है अमर्यादित होता है तो हमारे अंदर का रावण जागता है। और जब आचरण मर्यादित अर्थात अनुशासित होता है तब हमारे अंदर का राम जागता है । ज्ञानी भगवंत कहते है अधर्म करने वाले का सोना अच्छा है क्योंकि वो जागकर भी अधर्म ही फैलाएगा। और पुण्यात्मा व सज्जन का जागना अच्छा है। क्योंकि वो जहां जहां जायेगा अपने सदाचरण से दूसरो को आनंदित करेगा और धर्म का मार्ग दिखाएगा। हम अपने जीवन में क्या गलती लगातार कर रहे है ये पता तो है लेकिन उसे सुधारना नही चाहते। इसीलिए हमारे जीवन में आजतक प्रमोदभव नही आ पाया है। हमे केवल इतना प्रयास करना है की हम अपने नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदल सके। हमारे सकारात्मक विचार ही हमारी आत्मा का सकारात्मक विकास कर सकता है।