बारिश के मौसम में वनाचंल क्षेत्रो में बढ़ा मलेरिया का खतरा
पेल्सीफेरम पीएफ केस से पीडि़त मरीज की समय पर उपचार नहीं मिलने पर हो जाती है मौत
जनजागरुकता अभियान के बाद भी वनाचंल क्षेत्रो में बना हुआ है मलेरिया का खतरा
धमतरी। बारिश के मौसम में मलेरिया का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस मौसम में मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के लार्वा उत्पन्न होते है। पिछले कई सालों से शहरी क्षेत्रो की तुलना में वनाचंल ग्रामीण क्षेत्रो में मलेरिया का खतरा ज्यादा रहता है। वर्तमान में भी वनांचल क्षेत्रो में मलेरिया का खतरा बना हुआ है। बता दे कि मलेरिया संक्रमण चक्र तब शुरु होता है जब एक मादा मच्छर मलेरिया वाले व्यक्ति को काटती है मच्छर रक्त को निगलता है जिसमें परजीवी की प्रजनन कोशिकायें होती है एक बार मच्छर की लार गं्रथि में स्थानातंरित हो जाती है। तब मच्छर किसी अन्य व्यक्ति को काटता है तो मच्छर यह परजीवी उस व्यक्ति में इंजेक्ट कर देता है। मलेरिया परजीवी 5 प्रकार की होती है। जिनमें प्लाड मोडियम फाल्सीफेरम से सबसे अधिक मौत होती है। यदि समय पर इस संक्रमण के दौरान उपचार न मिले तो मौत का खतरा काफी बढ़ जाता है।
बता दे कि मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी से लोगों को बचाने हर साल मलेरिया जन जागरुकता कार्यक्रम चलाया जाता है। बाउजूद इसके मामले कम नहीं हो पाते है। इसका मुख्य कारण यह माना जाता है कि वनांचल क्षेत्रो में जंगल पेड़ पौधे ज्यादा होते है। पानी में लंबे समय तक कई स्थानों पर एकत्रित रहता है। ऐसे में यहां मलेरिया के लार्वा ज्यादा पनपते है। और जागरुकता और सुुविधायें के आभाव में ग्रामीण इसके शिकार हो जाते है। इस साल भी अब तक मलेरिया के कई मरीज मिल चुके है।
जिले के ये गांव है अतिसंवेदनशील
नगरी और मगरलोड क्षेत्र के कई वनांचल गांव मलेरिया की दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील माना जाता है। नगरी के ग्राम बोराई, खल्लारी, आमबाहरा, कौहाबाहरा, डोकाल, बेलरगांव, आमगांव, नवागांव, मगरलोड के ग्राम पठार, अरौद, डूबान समेत आसपास के करीब दर्ज भर गांवो को संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। यहां हर साल स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा घर घर सर्वे भी किया जाता है।
ये होते है मलेरिया के लक्षण
मलेरिया लाल रक्त कोशिकाओं का संक्रमण है मलेरिया के लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, पसीना आना, कभी कभी दस्त, पेट दर्द, श्वसन संकट, भ्रम और सीजर्स होता है। मलेरिया के प्रजनन स्थानों को खत्म करने हेतु ठहरे हुए पानी में लार्वा को मारना, मच्छरों के काटने से बचना जमे पानी की सफाई करना और लक्षण प्रतीत होने पर तत्काल चिकित्सक की सेवायें लेना शामिल है।