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इस संसार में हम राहगीर बनकर आए थे और इसे ही अपना घर मान बैठे है – विशुद्ध सागर जी म.सा.

कल से पर्युषण पर्व होगा प्रारंभ, आत्म की शुद्धि के लिए होंगे तप तपस्याएं

धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आत्मा के वास्तविक गुण को जानकर ज्ञान, दर्शन और चारित्र को पालकर जीवन का विकास करते हुए आत्मा को मोक्ष में ले जाना है। जीवन में समकित आयेगा तो जीवन की दशा और दिशा दोनो बदल जायेगी। हम शरीर से भले ही जाग रहे हो लेकिन आत्मा से आज भी सो रहे है। शाश्वत भव्य जिनालय को देखकर हमे विचार करना है मैं भी सिद्धपुर का ही वासी हू , बस संसार में भटक रहा हू। भटकते भटकते ये भी भूल गया हू की मैं तो इस संसार में एक राहगीर बनकर आया था। किंतु आज इसे ही अपना घर अर्थात अपनी मंजिल मान बैठा हू। ज्ञानी भगवंत कहते है अब अपना पुरुषार्थ आत्मा के लिए करना है। मेरी आत्मा मेरे शरीर से भिन्न है, और आत्मा ही वास्तविक है लेकिन फिर भी मैं शरीर को अपना मानकर आत्मा को भूल बैठा हू। और आत्मा को भूलने वाला कभी संसार सागर को पार नही कर सकता, कभी भी शाश्वत सुख को प्राप्त नहीं कर सकता। जब हमारा मन अपने अधिकार के लिए जागृत हो जाता है तो अपने दायित्व को भी भूल जाता है। अपनी आत्मा का जहां अहित होते हुए दिखाई दे वहां हम उदासीन रहते है। लेकिन जहां शरीर का अहित होते हुए दिखाई दे वहां हम जागृत हो जाते है।

ज्ञानी भगवंत कहते है शरीर तो पराया है लेकिन हम हमेशा उसी की चिंता करते है किंतु आत्मा तो हमारी है लेकिन हमे आत्मा की कोई चिंता नहीं है। अपने आत्मा के प्रति उदासीनता का भाव हमे जिनशासन से दूर करते जा रहा है। अपने अधिकार की चिंता करने वाला अपने दायित्वों के प्रति भी सजग रहता है। आज हम तीर्थों में जाकर भी संसार में रह जाते है। क्योंकि शरीर से भले ही कही भी पहुंच जाए लेकिन मन संसार में ही रह जाता है। इसीलिए हम भी आज तक संसार में ही भटक रहे है। हम संसार बढ़ाने वाली वस्तुओं में ही सुख खोजने का प्रयास करते है। कल से पर्युषण पर्व प्रारंभ होने जा रहा है। इस पर्युषण पर्व में हमे पांच कर्तव्यों का पालन करना है। हम शरीर के लिए बहुत काम कर लिए अब पर्युषण पर्व के आठ दिनों में आत्मा के लिए जीना है। केवल आत्मा के विकास के लिए पुरुषार्थ करना है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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