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हमे पाप से घृणा करना चाहिए पापी से नहीं – विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में कहा कि जिन्होंने अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया ऐसे सभी भाव्यत्माओ को वंदन है। आज के प्रवचन में हम प्रभु महावीर के उन नायको को जानने का प्रयास करेंगे जिनकी महान कृपा से आज ये धर्म हम तक पहुंचा हैं और पूरी दुनिया में गौरवान्वित है। आज हमे प्रभु महावीर के पाट परंपरा को जानने का प्रयास करना है। ऐसे महान आचार्यों ने सुई की तरह जिनशासन को सम्हालते और जोड़ते हुए यहां तक पहुंचाया है। आज कल्पसूत्र के दूसरे भाग स्थविरावली का श्रवण करेंगे। परमात्मा महावीर के शासन में गुरु अपने शिष्यों को इस तरह तैयार करते थे जो आगे चलकर स्वयं गुरु बन गए। भगवान महावीर के पाट पर जंबू स्वामी विराजे। 527 लोगो के साथ जंबू स्वामी ने दीक्षा ली। जंबू स्वामी के पाट पर प्रभव स्वामी विराजे। ज्ञानी कहते है हमे पाप से घृणा करना चाहिए पापी से नहीं। क्योंकि पता नही कब जीवन में परिवर्तन आ जाए और पापी पुण्यात्मा बन जाए। प्रभव स्वामी के पाट पर स्वयंभव सूरी विराजे। आपके पाट पर यशोभद्र सूरी जी विराजे। यशोभद्र सूरी जी के पाट पर भद्रबाहू स्वामी विराजे। भद्रबाहु स्वामी अंतिम श्रुत केवली चौदह पूर्व धारी हुए। भद्रबाहु स्वामी जी के पाट पर स्थूलिभद्र जी विराजे। स्थूलीभद्र जी का नाम आने वाली 84 चौबीसी तक काम विजेता के रूप में इतिहास में याद किया जाएगा। पाट परंपरा में आगे आर्य सुहस्तीगिरी पधारे। आपके शिष्य संप्रति राजा ने सवालाख जिन मंदिर बनवाया और सवा करोड़ जिन प्रतिमा भरवाई। आगे चलकर पाट में वज्र स्वामी विराजे। आपके बचपन में आपके पिता जो मुनि बन गए थे वो अपने शिष्य को कहते है आज गोचरी में सचित या अचित जो मिले ले आना। शिष्य गोचरी में चले जाते है एक गृहिणी अपने बालक से बहुत परेशान थी वो अपने पुत्र को साधु को दे देती है। शिष्य उस बालक को लेकर आ जाते है। उसका लालन पालन साधु जी की ओर से श्राविकाएं करती है। पलने में ही अभी शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लेते है। बालक जब थोड़ा बड़ा हुआ तब मां के मन में पुन: पुत्र के प्रति स्नेह जाग जाता है। उसे लेने वह महिला साधु के पास पहुंचती है लेकिन साधु उस बालक को देने से मना कर देते है । तब वह महिला राजा के पास जाकर न्याय मांगती है। तब राजा साधु तथा महिला को बुलाकर एक एक ओर खड़ा कर देते है और कहते है बालक जिस ओर चला जायेगा बालक उसे दे दिया जायेगा। तब साधु उस बालक को अपना राजोहरण दिखाते है और मां उस बालक को बहुत सारे खिलौने , पकवान आदि दिखाकर अपने और आकर्षित करती है। लेकिन वह बालक रजोहरण देखकर उसे लेने साधु की ओर दौड़ जाता है। और राजोहरन को लेकर नाचने लगता है। उसी समय से जैन दीक्षा के समय जब शिष्य को गुरु के द्वारा राजोहरान प्राप्त होता है तब वह संयम जीवन प्राप्त होने की खुशी नृत्य करके प्रकट करता है। पाट परंपरा में आगे हरिभद्र सूरी जी आए। आप परमविद्वान थे। किंतु आपने मन ये भी तय कर रखा था जब किसी की कोई गाथा का अर्थ मुझे समझ न आए तो मैं उसका शिष्य बन जाऊंगा। याकीनी महत्तरा साध्वी एक गाथा बोल रही थी उसका अर्थ समझ न आने पाने पर साध्वी जी के पास जाकर उसका अर्थ पूछते है। तब भावी लाभ को देखकर साध्वी जी ने अपने आचार्य के पास भेज दिया। हरिभद्र सूरी आचार्य के पास जाकर दीक्षा ले लेते है। और 1444 ग्रंथो की रचना करते है। पाट परंपरा में चलते चलते आगे पहले दादा श्री जिनदत्त सूरी जी विराजे। 50000 जैन बनाने वाले, जन से जैन बनाने वाले जैन गोत्र की स्थापना करने वाले आचार्य श्री जिनदत्त सूरी हुए। आपके पाट पर दूसरे दादा श्री जिनचंद्र सूरी विराजे। फिर पाट परंपरा में तीसरे दादा श्री जिन कुशल सूरी और चौथे दादा श्री जिन चंद्र सूरी जी विराजे। आगे पाट परंपरा में कालिकाचार्य जी विराजे। आपके ही समय में पंचमी के स्थान पर चौथ की संवत्सरी प्रारंभ हुई।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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