संसार में ऐसा कोई पदार्थ नही है जो हमे शाश्वत सुख प्रदान कर सके – विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि इस संसार में मैं केवल मेरा मेरा करता हू। पर इस संसार में कुछ भी मेरा नही है। क्योंकि जब मृत्यु आएगी तो सब कुछ यहीं छोड़कर जाना पड़ेगा। एक फूल जब डाली पर खिलता है तो उसी डाली का दूसरा फूल मुरझा जाता है यही संसार का नियम है। इसलिए ज्ञानी कहते है हे मानव तू सावधान हो जा। क्योंकि संसार में जो कुछ भी है सब नाशवान है कुछ भी शाश्वत नही है। यह संसार परिवर्तनशील है यहां हम कभी हंसते है तो कभी रोते है। हमारे जैसे कर्मो का उदय आता है उसी के अनुसार जीवन की परिस्थितियां भी बदलते रहती है। हम जब से इस संसार में आए है तब से आज तक सो सोकर हम अपना रात बिता रहे है और बातों में सारा दिन बिता रहे है। कुछ भी धर्म इस जीवन में नही कर रहे है। जबकि केवल यही परलोक में काम आने वाला है। हमारे अच्छे कर्म ही हमे आने वाले भव में सुख की प्राप्ति करा सकते है। और सुख ही जीवन को सरल और सहज बना सकता है। सबकुछ बनने के चक्कर में हम जो है वास्तव में उसे ही भूल जाते है। ये जिनशासन हमे हमारे वास्तविक स्वरूप को समझाने वाला है। ये जिनशासन हमे जड़ और चेतन का भेद समझाने वाला है। इस जिनशासन में हमे उसे देखने का प्रयास करना है जिसके कारण हमे देखने की शक्ति मिली है। हम इस संसार के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह आ तो गए है लेकिन चक्रव्यूह से निकलने नही आता है। क्योंकि हम संसार में फंसना तो जानते है लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नहीं जानते है या फिर निकलना ही नही चाहते है। उस काल में अभिमन्यु को फसाने के लिए चक्रव्यूह कौरवों की ओर से बनाया गया था। लेकिन आज हम अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूह में फंसे हुए है इसलिए इससे निकलने का प्रयास भी स्वयं को करना होगा। इस संसार में हमारी सबसे बड़ी भूल है की हम संसार में अनित्य को नित्य मानते है। हम इस संसार में जड़ पदार्थो के राग में फंसकर अपनी चेतन आत्मा को भूल गए है। ज्ञानी कहते है हमे इस संसार में जो नित्य है, शाश्वत है, सत्य है उसे ही प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन हमारा प्रयास अनित्य को प्राप्त करने के लिए होता है इसलिए हम दुखी रहते है। संसार में ऐसा कोई पदार्थ नही है जो हमे शाश्वत सुख प्रदान कर सके। संसार में जो अनित्य है वो मूल्यवान है लेकिन जो नित्य है वो अमूल्य है। संसार के उन पदार्थो को हम खरीद सकते है जो हमे क्षणिक सुख देते है लेकिन उसे नही खरीदा जा सकता जो हमे शाश्वत सुख दे सकता है। संसार में कभी भी कोई जड़ पदार्थ सुख दुख का अनुभव नहीं कर सकता है। हमारी भी स्थिति ऐसी ही है। क्योंकि हमे केवल जड़ पदार्थो में ही सुख दिखाई देता है। जड़ पदार्थो की आसक्ति में हमे अपने जीवन को जड़ जैसा नही बनाना है। तभी आत्मा का विकास हो सकता है। ज्ञानी कहते है हमे कभी अनित्य वस्तुओ से सुख की इच्छा नही करनी चाहिए। क्योंकि अनित्य वस्तु कभी भी शाश्वत सुख नही दे सकता।