इस दुनिया में अनहोनी कोई घटना नहीं है और हम अनहोनी मानकर अधीर हो जाते है – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा.
चातुर्मास के तहत ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में दिया जा रहा प्रवचन
हम इस स्वप्न के दुनिया से निकल नहीं पाते इसलिए दुखी हो जाते है
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म. सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा. आदी ठाणा 3 द्वारा चातुर्मास के तहत ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में प्रवचन दिया जा रहा है इसी कड़ी में आज परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा. ने कहा कि जीवन स्वप्न के समान है जिस प्रकार किसी डाली पर पंछी बैठता है तो उड़ भी जाता है। उसी प्रकार कोई सोता हुआ व्यक्ति स्वप्न देखता है तो स्वप्न टूट ही जाता है। इसी प्रकार जीवन क्षणिक टूटने वाला है। इस क्षणिक जीवन में भी हमने अनेक रुप धारण किया है। अनन्त काल की इस यात्रा में हमने अनन्त प्रकार के चोले हमने धारण किये है जिस प्रकार सांप केचुली छोड़ता है मनुष्य वस्त्र बदलता है उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है हम इस स्वप्न के दुनिया से निकल नहीं पाते इसलिए दुखी हो जाते है।
ज्ञानी भगवन्त कहते है कि चिंतन करने का प्रयास करे कि मै आत्मा हुँ स्वयं आत्मा स्वरुप को नहीं देख पाता हुँ इसलिए दूसरों को भी स्वीकार नहीं कर पाता। स्व में स्व को देखते हुए चिंतन जरुर करें। इस दुनिया में अनहोनी कोई घटना नहीं है और हम अनहोनी मानकर अधीर हो जाते है। यह स्वीकार करें कि जो परमात्मा के विकरात आया है वहीं परिलक्षित होगा वहीं घटेगा। कोयला हीरा बन सकता है लेकिन पत्थर हीरा नहीं बन सकता। कमान से तीर निकल जाए फिर भी जब तक आयु शेष है तब तक मृत्यु नहीं होगी। पौरुष बल से अनन्त सुख को प्राप्त करें। आज तक हमने वास्तविक में निश्चिय करके अपनी आत्मा का ध्यान नहीं किया है। ऐसा कर ले तो सब प्रकार के भव भव की पीड़ा को समाप्त कर सकते है। शब्दो के माया जाल में हम उलझ जाते है इससे मुक्त होंगे तभी आत्म स्वरुप को देख पायेंगे। अपनी आत्मा को स्थिर करने का प्रयास करें। यही आत्मा हमें परमात्मा से मिलाने और परमात्मा बनाने का कार्य करेंगी। बहुत सरल सहज जीवन हम बना सकते है। हमारा जीवन, मन, आचार, विचार पवित्र बनाए। अपने स्वरुप को देखते हुए निर्णय करें वास्तविक में आत्म विशलेषण करना आवश्यक है। चातुर्मास पूर्णत: की ओर है इसमें निर्णय नहीं लिया तो जो हाथ में है वह भी निकलने में समय नहीं लगेगा। इस दौरान क्या खोया, क्या पाया विशलेषण कर निर्णय तक ले जाने से उतनी ही सफलता निकट आएगी।