आत्म में कषाय तो मोक्ष नहीं मिल सकता – लयस्मिता श्री जी म.सा.
परमात्म भक्ति से हमे निर्भयता, निर्मलता, निश्चितंता मिलती है - भव्योदया श्री जी म.सा.
धमतरी। पाश्र्वनाथ जिनालय में परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन के माध्यम से कहा कि जम्बुस्वामी सुधर्मास्वामी से पूछ रहे है कि भगवान महावीर ने इस सूत्र की रचना क्यों की? तब सुधर्मा स्वामी बताते है कि भाव आत्माओं को भव बंधन से मुक्त कराने के लिए परमात्मा ने इस उपासक दशांग सूत्र की रचना की है। और इस सूत्र को गूंथने का काम गणधरों ने किया है। आगे बताते है की भगवान महावीर आनंद श्रावक को संबोधित करते हुए कहते है कि हे आनंद ,अगर उध्र्वगामी बनना चाहते हो, इस संसार सागर से मुक्ति चाहते हो तो तुम्हे बाहर से भीतर आना होगा। अर्थात संसार को छोड़कर अपनी आत्मा को देखना होगा। जैसे एक व्यापारी दिन भर व्यापार करके जब अपने घर पहुंचता है तो उसे घर में आराम मिलता है पारिवारिक जनों से मिलकर दिनभर की थकान दूर हो जाती है वैसे ही अब हमे संसार को छोड़कर अब अपनी आत्मा के वास्तविक घर में पहुंचना है, आत्मा का वास्तविक घर मोक्ष है। जहां पहुंचकर आत्मा को परम शांति मिलती है। किंतु हमे 4 प्रकार के कषाय मोक्ष में जाने से रोकते है। जिसमे पहला कषाय है अनंतानुबंधी कषाय। ये पत्थर में खींची हुई लकीर की तरह होता है । जिस प्रकार पत्थर की लकीर कभी नही मिटती उसी प्रकार ऐसा कषाय भी आजीवन रहता है। दूसरा है अप्रत्यख्यानी कषाय। ये खेत में पढ़ी दरार की तरह होता है। जिस प्रकार खेत का दरार बरसात होने पर भर जाता है उसी प्रकार ये कषाय साधु संतो के सत्संग सुनकर, स्वाध्याय करने से ,आराधना साधना करने से सावत्सरिक प्रतिक्रमण से दूर हो जाता है। तीसरा कषाय है प्रत्याख्यानी कषाय। ये रेत में पड़ी दरार की तरह होता है। जिस प्रकार एक बार हवा का झोंका आने पर रेत में दरार पड़ जाता है और कुछ ही समय में पुन: रेत का झोंका आने पर दरार मिट जाता है। उसी प्रकार का ये कषाय होता है। चौथा कषाय है सज्वलन कषाय। ये पानी में खींचे लकीर की तरह होता है। जिस प्रकार पानी में खींचा गया लकीर तुरंत मिट जाता है उसी प्रकार ये कषाय भी तुरंत समाप्त हो जाता है। फिर भी जब तक हमारी आत्मा में कषाय हो तब तक यथा ख्यात चारित्र और केवलज्ञान नही मिल सकता। और इसके बिना मोक्ष नही मिल सकता।
परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि अगर भौंरे की तरह हमारे अंदर भी परमात्मा का गुंजारव होता रहेगा तो एक दिन हम भी परमात्मा बन सकते है। परमात्म भक्ति से हमे तीन प्रकार का उपहार मिलता है। पहला उपहार है निर्भयता- जैसे एक मां की गोद में बालक निर्भय हो जाता है। चाहे कुछ भी हो जाए किंतु जब तक मैं अपनी मां की गोद में हू मेरा कोई कुछ भी अहित नहीं कर सकता। परमात्मा भक्ति से हमे ऐसी ही निर्भयता प्राप्त हो जाती है। दूसरा उपहार है निर्मलता- जिस प्रकार एक मां अपने बच्चे को निर्मल बनाती है उसी प्रकार परमात्मा भक्ति से हम भी अपने कषायो, पापों और मिथ्यात्व को दूर कर निर्मल बनते है। तीसरा उपहार है निश्चिंतता- जिस प्रकार एक बालक अपनी मां की गोद में जाकर निश्चिंत हो जाता है उसी प्रकार परमात्मा भक्ति करके हम भी निश्चित बन सकते है। प्रतिक्रमण का तीसरा आवश्यक है वंदन। परमात्मा ने शरीर में सबसे सुंदर अंग दिया है मस्तक। ये हर जगह नही झुकना चाहिए। इसे केवल परमात्मा के सामने झुकाना चाहिए। जिनके माध्यम से हमारे कर्मो की निर्जरा होती हो वहां ये मस्तक झुकना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु को वंदन करने के लिए भी गुरु की आज्ञा लेनी चाहिए। हमे विधि पूर्वक तथा अहोभाव से वंदन करना चाहिए। जैसे हम घर दुकान की सफाई प्रतिदिन करते है क्योंकि हमे साफ सफाई पसंद है उसी प्रकार अपने आत्मा की साफ सफाई के लिए प्रतिदिन प्रतिक्रमण करना चाहिए। ताकि पापों का प्रायश्चित हो सके जिससे आत्म की सफाई हो जाए। हम जिस ईंट, मिट्टी, सीमेंट के घर को अपना समझते है जिस घर में हम रहते गैस घर को अपना घर मन लेते है । पर वास्तव में वो हमारा घर नही है। हमारी आत्मा का शाश्वत घर तो मोक्ष है। जिस प्रकार एक व्यक्ति को ससुराल में ज्यादा दिन अच्छा नहीं लगता उसी प्रकार ये संसार हमारी आत्मा के लिए स्वार्थ का ससुराल है। आज के प्रवचन में भंवरलाल छाजेड़, लुनकरण गोलछा, मूलचंद लूनिया, देव लूनिया, निलेश पारख, राहुल सेठिया, शिशिर सेठिया, नीरज नाहर, कुशल चोपड़ा, जनक राम रजक, श्रीमती किरण सेठिया, श्रीमती संगीता गोलछा, श्रीमती अलित बुरड़, श्रीमती मंजू डागा, श्रीमती शकुन सराफ, सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।