जिनका काम सिर्फ देना है वह सुमित है और यह सिर्फ परमात्मा ही कर सकते है – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा
सहजानंदी चातुर्मास के तहत भंवरलाल, मूलचंद जी छाजेड़ के अमलतासपुरम निवास में हुआ प्रवचन
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म.सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा द्वारा आज सहजानंदी चातुर्मास के तहत भंवरलाल, मूलचंद जी छाजेड़ के अमलतासपुरम निवास में प्रवचन हुआ। परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा ने कहा कि परिवर्तन ही प्रकृति का शाश्वत नियम है। दूखी होने का सबसे आसान तरीका यह है कि मै जो चाहू वैसा ही हो इन्ही परिस्थितियों में ज्ञानी सुखी होते है। ज्ञानी इसलिए सुख होते है क्योंकि जो हो रहा है वे उसे चाह लेते है। प्रभु आदिनाथ भगवान ने इस सदी में कैसे रहना, कैसे खाना है यह बताया है। पुरुषो के 72, स्त्रीयों के 64 कलाएं सब बताया है। परिवर्तन के क्रम में हम कल दादा आदिनाथ से मिले और भगवान पाश्र्वनाथ के दर्शन करेंगे। उन्होने आगे कहा कि विचार करें। हम जो चाहते है वह पाने की संभावना तब बढ़ जाती है जब हमारा पुण्य बढ़े। पुण्य कम होगा तो हम जो चाहे उसके मिलने की संभावना कम होगी। जो जैसा है उसे स्वीकार नहीं कर पाते इसलिए उनका प्रेम वात्सल्य नहीं मिल पाता है। हम अपने रहने का इतना आलीसान घर बनाते है तो क्या हम परमात्मा का घर नहीं बना सकते? विचार करें यह परमात्मा है तो हम है। और परमात्मा साथ न हो तो हमे कौन पूछता।
परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा ने कहा कि चिंतन करें इन मै कहा हुँ? हमारी बुद्धि पहले तोडऩे में जाती है जबकि बद्धि जोडऩे में होनी चाहिए। सबसे अच्छा मित्र वह है जो सिर्फ देने की बात करता है लेने की नही। जो बोलो सुन ले विचार करें ऐसा कोई सुमित हमारे जीवन में है क्या? क्या हम अपने स्वयं के सुमित है विचार करें। क्या हम स्वयं का अच्छा मित्र है? क्या हमारा व्यवस्था अपने प्रति अच्छा है? क्या हम स्वयं के आत्म तत्व की उपेक्षा करते है? क्या एक दिन भी ऐसा बीतता है जहां दूसरों से अपेक्षा नहीं करते है? ज्ञान भगन्वत जो हमसे अपेक्षा रखते है उसकी पूर्ति हम कर पाते? जिनका काम सिर्फ देना है वह सुमित है। और यह सिर्फ परमात्मा ही कर सकता है। क्या हमने परमात्मा को अपना अच्छा मित्र बनाया है? क्या हम आत्मस्वरुप की चिंता करते है? जितने भी बाहर है सब लेने वाले है। परमात्मा ही देने वाला है। परमात्मा को सुमित के स्थान पर लाये तो हमारी मति कभी खराब नहीं होगी। वास्तव में हमारी मति कुमति में चल रही है। हम गलत को सही मान रहे है। और छूटने वाले को पकडऩे का प्रयास कर रहे है, विचार करें।