पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है सप्त ऋषियों की तपोभूमि धमतरी जिले का वनांचल सिहावा
आश्रम के निकट जलकुण्ड से छत्तीसगढ़ की गंगा चित्रोत्पला महानदी का हुआ है उद्गम माघ पूर्णिमा पर लगता है विशाल मेला
धमतरी। धमतरी जिले का वनांचल क्षेत्र सप्तऋषियों की तपोभूमि के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ ही जीवनदायिनी चित्रोत्पला महानदी का उद्गम भी सिहावा पर्वत से ही हुआ है। यह क्षेत्र पहाड़, नदियों और हरे-भरे जंगलों से भरपूर अनायास ही अपनी ओर पर्यटकों को खींच लेता है। श्रृंगीऋषि सिहावा की पहाड़ी से लगभग 42 मीटर की ऊंचाई पर महेन्द्रगिरी के नाम से विख्यात है। यहां त्रेतायुग के प्रसिद्ध ऋषि, श्रृंगि ऋषि का आश्रम, उससे कुछ दूरी पर गुफा और उनकी पत्नी शांता का आश्रम है। श्रृंगि ऋषि आश्रम का प्राचीन काल से तांत्रिकों की पूजा के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। आश्रम में एक तालाब है। आश्रम के निकट जलकुण्ड से छत्तीसगढ़ की गंगा चित्रोत्पला महानदी का उद्गम हुआ है। यहां माघ पूर्णिमा में विशाल मेला आयोजित होता है। सिहावा के श्रृंगी ऋषि आश्रम से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर केकराडांगरी मां देवी के नाम से प्रसिद्ध पहाडिय़ों की श्रृंखला स्थित है। यह गांव दुधावा बांध की सीमारेखा के समीप है। इस गांव से पास केकराडोंगरी से कंक ऋषि का आश्रम जुड़ता है। कंक ऋषि उस समय के बहुत ही ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति थे। महर्षि श्रृंगी के आश्रम से उत्तर में नगरी से आठ किलोमीटर की दूरी पर मगरलोड ब्लॉक में दलदली नाम गांव के जंगल में ऋषि सरभंग का आश्रम है। सरभंग ऋषि पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जहां तक जाने के लिए पगडंडी है। साल में एक बार शरद पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है। सरभंग ऋषि की दूसरी पहाड़ी में दो कुंड है, जिसमें बारहों महीने पानी भरा रहता है और रात्रि में दोनों कुंड में प्रकाश दिखता है। इसके साथ ही अंगीरा ऋषि का आश्रम नगरी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पहाड़ी के पास ग्राम-घटुला और रतावा है। अंगीरा ऋषि आश्रम पहाडिय़ों की गुफाओं पर स्थित बहुत ही मनोरंजक स्थल है। इस आश्रम का मार्ग बहुत ही संकरा है। यहां समीप में गुफाएं हैं, जिनके रास्ते में बहुत ही अंधेरा होता है। यहां पर जंगली जानवर-तेंदुआ, जंगली सुअर, भालू और अजगर इत्यादि पाए जाते हैं। श्रृंगी ऋषि के दक्षिण में पहाड़ के ऊपर में अगस्त्य ऋषि का आश्रम स्थित है। यह स्थान नगरी से एक मिलोमीटर की दूर पर हरदीभाटा गांव के उपर है। त्रेतायुगीन ऋषि अगस्त्य बहुत शक्तिशाली और ज्ञानी पुरूष थे। उन्होंने भारतीय कला, विज्ञान और संस्कृति के महत्व को समझने के लिए दक्षिण भारत को चुना। महर्षि मुचकुंद ऋषि का आश्रम सीतानदी के पास जंगली जीवन से मुक्त मेचका गांव के मेचका पहाड़ी पर स्थित है। मेचका गांव का नाम मुचकुंद ऋषि के नाम पर रखा गया है। यह नगरी से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान का महत्व धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। शांति कुण्ड, दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर, रानी गुफा, बाबा कुटिया और अन्य शरण स्थली इस पहाड़ी पर है। गढ़मर्दन पहाड़ी पर मांदागिरी में गौतम ऋषि आश्रम स्थित है। यह आश्रम नगरी से दक्षिण की ओर 27 किलोमीटर की दूरी पर सीतानदी के वनक्षेत्र में स्थित मांदागिरी पर स्थित है। इस पर्वत पर उत्तम मूर्तियों के मंदिर, आश्रम, गुफाएं और झूलते हुए पत्थर-तालाब इत्यादि हैं।
सोमवंशी शासकों ने 1114 ईसा पूर्व कराया था कर्णेश्वर मंदिर का निर्माण
महानदी और बाल्का नदी के किनारे पर नगरी से छ: किलोमीटर की दूरी पर देउरपारा नामक गांव के पास कर्णेश्वर मंदिर है। सोमवंशी शासकों ने इस मंदिर का निर्माण 1114 ईसा पूर्व में कराया था। कर्णेश्वर का विशाल शिव मंदिर, सिहावा के उत्तर-पूर्व में स्थित छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन शिवलिंगों में से एक है। कर्णेश्वर मंदिर के पास एक पहाड़ी है, जो लोमश ऋषि की तपोभूमि कहलाती है। कर्णेश्वर में छ: प्राचीन मंदिर हैं। यहां आयताकार 16 लकीरें खींची गई हैं, जो करनाज के सोमवंशी शासकों को दर्शाता है। कर्णेश्वर मंदिर के पास एक अमृत कुंड है।