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श्रीराम की बहन शांता का सिहावा के श्रृंगि ऋषि के साथ हुआ था विवाह

धमतरी जिले से श्रीराम का है अटूट रिश्ता, वनवास के दौरान पहुंचे थे जिले के विभिन्न स्थानों पर

बिताया था समय, सीखी थी विद्या, की थी विशेष पूजा अर्चना
आशीष मिन्नी
धमतरी। अध्योया में 500 सालों से अधिक के इंतजार के पश्चात भव्य राम मंदिर का निर्माण कर भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा कराई जाएगी। जिससे पूरा देश राममय हो गया है। भगवान राम का धमतरी जिले से विशेष नाता रहा है।
कथा के अनुसार भगवान राम की बहन शांता का विवाह श्रृंगि ऋषि से हुआ था। इसके अतिरिक्त वे वनवास काल के दौरान काफी समय तक जिले के विभिन्न स्थानों में पहुंचे और समय बिताया। कथा के अनुसार शांतदेवी दशरथ और रानी कौशिल्या की पुत्री थी राम सहित चारो भाईयो से शांता बड़ी थी। बताया जाता है कि शांता ज्यादा समय तक अपने माता-पिता के पास नहीं रही। रानी कौशिल्या की बहन वर्षिणी जिसका विवाह अंग देश के राजा रोमपद से हुआ था।

जिनकी कोई संतान नहीं थी। जिसके चलते वे काफी दुखी थे इसलिए राजा दशरथ व माता कौशिल्या ने अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी व रोमपद को दे दिया। दोनो ने शांता देवी की बेहतर परवरिस की। इसके पश्चात महार्षि विभाडंक के पुत्र श्रृंगि ऋषि से शांता देवी का विवाह हुआ। इस प्रकार भगवान श्रीराम का सिहावा व श्रृंगि ऋषि से अटूट नाता रहा। वनवास काल के दौरान वन विहार करते हुए भगवान श्रीराम माता सीता व लक्षमण सिहावा क्षेत्र पहुंचे जहां सप्त ऋषियों से भेंटकर समय बिताया। पुराणो के अनुसार वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम जिले के रुद्री, विश्रामपुर, श्रंृगि ऋषि आश्रम सिहावा, ऋषि मंडल नगरी, अगस्त आश्रम, हरदीभाटा नगरी, शरभंग आश्रम दलदली नगरी, अंगीरा आश्रम घठुला, मुचकुंद आश्रम मेचका, वाल्मिकी आश्रम एकावरी सीतानदी अभ्यरण्य, कर्क आश्रम दुधावा पहुंचे थे। अंगीरा आश्रम में श्रीराम में समय बिताया। कंदमूल आहार लिया। पूजा अर्चना की। विश्रामपुर में भगवान राम, लक्ष्मण ने विश्राम किया। महानदी के किनारे उन्होने समय बिताया था।
गुमनामी के अंधेरे व सुविधाओं के आभाव में रहा है शांता देवी की गुफा

ज्ञात हो कि सिहावा पर्वत में स्थित शांतादेवी मंदिर अभी तक ज्यादा प्रचलित नहीं हो पाया है न ही इस मंदिर का विकास हो पाया है। भगवान राम की बड़ी बहन व राजा दशरथ की प्रथम पुत्री श्रंृगि ऋषि की पत्नि होने के बाद भी शांतादेवी को काफी कम लो जानते है। सिहावा के श्रृंगि ऋषि पर्वत की 400 से अधिक सीढियां चढऩे के बाद लगभग 1 किमी आगे जाने पर शांता देवी की गुफा है। जहां काफी कम लोग पहुंचते है। गुफा जाने का एक और रास्ता जो कि सिहावा के शीतला मंदिर के सामने से पर्वत की सीधी चढ़ाई कर है। सुविधाओं व जानकारी के अभाव में अब तक शांता देवी की गुफा गुमनामी में ही रहा है।
अगस्त ऋषि से श्रीराम ने सीखी थी भूखा प्यासा रहने की विद्या

अगस्त ऋषि आश्रम के पुजारी नथन राम ने बताया कि वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम अगस्त ऋषि आश्रम पहुंचे थे। इस दौरान उन्होने बला अति बला जड़ी-बुटी का सेवन कर अति बला विद्या सीखी जिसके माध्यम से लंब समय तक भूख प्यास नहीं लगता था। इससे वन गमन के दौरान शक्ति व ऊर्जा का संचार भूखा प्यासा रहने के बाद भी रहता था। यहां भगवान श्री राम के पद चिन्हा विराजित है। त्रेता युग में जब भगवान राम यहां पहुंचे थे। तो उन्होने पर्वत पर महालक्ष्मी की आराधना की थी इस दौरान पत्थर पर कमल का आकार अंकित हो गया था जो आज तक है।
राजा दशरथ ने सिहावा में कराया था पुत्र कामेष्टि यज्ञ
बता दे कि पौराणिक काल से ऐसी कथा प्रचलित है कि राजा दशरथ व उनकी तीनों रानियों ने पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर श्रृंगि ऋषि के पास पहुंचे जहां उन्होने संतान प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया था। जिसके परिणाम स्वरुप राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन का जन्म हुआ था। जिसका उल्लेख रामचरित मानस में है। आज भी सिहावा पर्वत में विष्णु महायज्ञ व पुत्रेष्टि यज्ञ हर साल पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ भक्तों द्वारा कराया जाता है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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