विधि-विधान से की गई भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ व बहन सुभद्रा की पुन: प्राण प्रतिष्ठा
कल धूमधाम से निकाली जाएगी महाप्रभु की रथयात्रा, उमड़ेगी हजारों भक्तों की भीड़
धमतरी। 29 जून से रथयात्रा महोत्सव प्रारंभ हो चुका है। जिसके तहत रोजाना विधिवत धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न हो रहे है। आज महाप्रभु जगन्नाथ की प्रतिमा का पुन: प्राण प्रतिष्ठा की गई। वही कल धूमधाम से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। आज सुबह लगभग 10 बजे भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा का मंत्रोच्चार के साथ पुन: प्राण प्रतिष्ठा प्रारंभ हुआ। इस दौरान पंडित बालकृष्ण शर्मा ने यह परम्परा सम्पन्न कराई। उल्लेखनीय है कि विगत 112 वर्षो से धमतरी में भक्तों की उत्साह व हर्षोल्लास के साथ रथयात्रा निकाली जा रही थी। आज सुबह से ही मठमंदिर स्थित जगदीश मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरु हुआ। जो कल पूरे दिन जारी रहेगा। जगदीश मंदिर पुजारी पंडित बालकृष्ण शर्मा ने बताया कि रथयात्रा महोत्सव 29 जून से प्रारंभ हुआ। 29 जून को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र भैय्या व माता सुभद्रा के महास्नान से हुआ। पश्चात 2 से 5 जुलाई तक भगवान जगन्नाथ को औषधि युक्त काढ़ा का वितरण किया गया। वही आज महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र भैय्या व माता सुभद्रा की विशेष पूजा, हवन एवं महाआरती किया गया। पश्चात मूर्तियों को गर्भगृह में पुन: प्राण प्रतिष्ठा किया गया। साथ ही 7 को रथयात्रा पर्व पर भी महाप्रभु की विशेष पूजा के बाद महाआरती होगी व रथयात्रा जगदीश मंदिर से निकाली जाएगी। पश्चात गजामूंग का विशेष प्रसादी भक्तों को वितरण किया जाएगा। इसकी तैयारी पूर्ण कर ली गई है। 19 जुलाई को महाप्रभु की रथ वापसी होगी।
11 दशक से चली आ रही परम्परा
ज्ञात हो कि 1912 में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित किया गया। जिसे उड़ीसा के कारीगरों ने आकार दिया था जिसके पश्चात रथयात्रा धमतरी में निकाली जा रही है। इस प्रकार लगभग 11 दशक से रथयात्रा निकालने की परम्परा जारी है। कोरोना काल के दौरान दो वर्ष 2020-2021 में रथयात्रा नहीं निकाली गई। भगवान जगन्नाथ के रथ को खीचने भक्तों में होड़ मची रहती है। इस अनूठे यात्रा में हजारो भक्त शामिल होते है। ज्ञात हो कि रथयात्रा पर्व के तहत भगवान जगन्नाथ को रथ में विराजित कर धूमधाम से रथयात्रा निकाली जाती है। उक्त रथ का उपयोग पिछले कई सालो से होने से जर्जर एवं कमजोर हो गई थी। इसे ध्यान में रख सन 2019 में नया रथ तैयार कराया गया। इसे बनाने में कारीगरो को छह माह लग गये थे।