परमात्मा में इतनी क्षमता होती है कि वह हमे भी परमात्मा बना सकते हैं-विशुद्ध सागर जी म.सा
परम पूज्य उपाध्याय प्रवर महेंद्र सागर जी म.सा. परम पूज्य मनीष सागर जी म.सा के शिष्य रत्न परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा परम पूज्य पुण्यवर्धन सागर जी म.सा परम पूज्य जीतवर्धन सागर जी म.सा चातुर्मास हेतु श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार में विराजित है। प्रवचन के माध्यम से परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा ने कहा कि मुझे अपने जीवन को आदर्श रूप में प्रस्तुत करना है। इसके लिए दो काम करना है। पहला अपने दुर्गुणों को बाहर निकालना है और दूसरा सद्गुणों को ग्रहण करना है। और इसके लिए मुझे परमात्मा के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करना है। आज का दिन परिवर्तन का दिन है। मुझे कोई कीर्तिमान स्थापित नहीं करना है बल्कि अपने जीवन को आदर्श बनाने का प्रयास करना है। जिस प्रकार चुंबक की ताकत होती है की वह लोहे को भी चुंबक बना दे। उसी प्रकार परमात्मा में भी इतनी क्षमता होती है कि वह हमे परमात्मा बना दे। जब हम संसार के कार्यों के लिए कम करते है गोते खाते है तो दुख अपना दुख ही बढ़ाते है । जबकि आत्मविकास के लिए जब हम गोते लगाते है तो जीवन में सुख और शांति मिलता है। प्रत्येक वर्ष 3 चातुर्मास आते है जिसमें से यह आषाढी चातुर्मास आज से प्रारंभ हो रहा है। आषाढी चातुर्मास के आते ही प्रकृति में परिवर्तन प्रारंभ हो जाता है। इसलिए ईस चातुर्मास को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हमे भी इस चातुर्मास के साथ जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास करना है। दूसरा कार्तिक चातुर्मास होता है। इस चातुर्मास के आते ही त्योहारों की श्रृंखला प्रारंभ हो जाती है। तीसरा फागुन चातुर्मास होता है। इसके आते ही त्योहारों की श्रृंखला समाप्त होती है। हमे इस चातुर्मास का भरपूर लाभ उठाना है ताकि आत्मा का कल्याण हो सके। आगे बढ़ते बढ़ते मानो हम मानव जीवन के रूप में उस तट तक पहुंच गए है। जहां से ऊपर उठने की अर्थात मोक्ष तक पहुंचने की संभावना है ।यदि किसी नदी में भरपूर पाने हो लेकिन उपयोग के लिए न मिले तो अच्छा नहीं लगता। जैसे भोजन शाला में भोजन हो लेकिन समय पर उपभोग हेतु न मिले, जैसे सूर्य उदय हो लेकिन उसकी कितने न निकले तो अच्छा नहीं लगता। ठीक उसी प्रकार हमे अपने औचित्य का अर्थात अपने कर्तव्य का पालन करना है। हमे परमात्मा से श्रावक का पद मिला है लेकिन क्या हम उस कर्तव्य का पालन कर रहे है। यदि नहीं कर रहे तो क्या ये परमात्मा को अच्छा लगेगा? हमे यह प्रश्न स्वयं से करना है । संसार में हमे कोई भी पद मिल जाए पद मिलने के बाद वो छीन न जाए या फिर उस पद पर कोई दूसरा न आ जाए इस बात का डर हमेशा बने रहता है। और ऐसा न हो इसके लिए हम साम, दाम, दंड और भेद सभी युक्ति अपनाते है। लेकिन परमात्मा से मिले श्रावक का पद जो कभी कोई नहीं छीन सकता। उसकी हमे कोई चिंता नहीं है। जीवन में दो गाड़ी सदा चलते रहती है जानना और सीखना। यह क्रम तब तक चलते रहता है जब तक हम सिद्ध बुद्ध न हो जाए। हमे भी परमात्मा से यही कहना है जहां के चलोगे वहां मैं चलूंगा। जहां रख लोगे वहां रह लूंगा।प्रवचन में भंवरलाल छाजेड़, विजय गोलछा, जीवनलाल लोढ़ा, मोहन गोलछा, संजय लोढ़ा, अजय बरडिया, पारसमल गोलछा, शिशिर सेठिया, निलेश पारख, नीरज नाहर, कुशल चोपड़ा, नितिन बरडिया, मयूर पारख, किरण सेठिया, अलित बुरड़, अंजना सेठिया , कविता नाहर सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।