गुरु उस गूगल मैप की तरह होते है जो भटकते हुए राही को सही मार्ग दिखाते है-विशुद्ध सागर जी म.सा.
परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने आज के अपने प्रवचन में कहा कि आज का दिन विशेष है। आज का दिन उपकारी गुरु के उपकार को याद करने का दिन है। आज का दिन हमे जन से जैन और जैन से सज्जन बनाने वाले चारों दादा गुरुदेव को याद करने का दिन है। शिष्य सदा ही अपने वर्तमान की सोचता है लेकिन गुरु उससे चार कदम आगे अर्थात अपने शिष्य के भविष्य के बारे में सोचता है। गुरु उस गूगल मैप की तरह होते है जो भटकते हुए राही को सही मार्ग दिखाते है। आज हमे भी यह संकल्प करना है कि गुरु कृपा से हमारा भी जीवन सफल बन सके। गुरु माता-पिता, बंधु और सखा के समान होते है। ऐसे गुरु को मेरा नमन है। शिष्य की दशा और दिशा बदलने वाला गुरु होता है। एक ही व्यक्तित्व में सभी गुणों का दर्शन कराने वाला गुरु होता है।जब हम गुरु के साथ होते है तो हमे औचित्य अर्थात अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। और जब गुरु से दूर होते है तो उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। हम भी अपने गुरु की आज्ञा से गुरु से दूर होकर धमतरी में चातुर्मास करने आए है। जब गुरु अपने शिष्य को अपने से दूर करते है तो शिष्य को लगता है कि गुरु का उसके प्रति स्नेह भाव नहीं है। किंतु वास्तव में गुरु अपने शिष्य को अपने जैसा बनाने के लिए स्वयं से दूर करते है। आज हमे भी चिंतन करना है कि हमे तो गुरु मिल गए किंतु क्या हम गुरु से मिल पाए.प्रभुता चाहने वालों में लघुताऔर गुरूता होनी चाहिए.एक शिष्य जिन्हें अपना सबकुछ मानता है वह गुरु स्वयं को कुछ नहीं समझता यही गुरु की गुरूता है। एक सच्चा गुरु हमेशा आत्म विकास की बात करता है।
*हम गुरु पूर्णिमा मनाते है प्रभु पूर्णिमा क्यों नहीं मनाते?*
परमात्मा पूर्ण होते है और गुरु अपूर्ण होते है। फिर भी हम गुरु पूर्णिमा इसलिए मनाते है गुरु की कृपा होने पर ही हमे पूर्ण बनने का अवसर मिल सकता है। एक शिष्य के लिए गुरु हमेशा ही पूर्ण होता है। किसी भी शिष्य को कभी भी अपने गुरु की कमी नहीं देखना चाहिए। क्योकि कमी देखने और उसे दूर करने का काम गुरु का होता है शिष्य का नहीं। शिष्य को सदा ही गुरु भक्त बनना चाहिए गुरु द्रोही नहीं।
हमे आगे बढ़ने के लिए सदा ही एक मजबूत कंधे की जरूरत होती है। और वह कंधा प्रभावित और पक्षपाती नहीं होना चाहिए। ऐसा कंधा केवल गुरु से ही मिलता है ।गुरु वो होते है जो शिष्य की गलती होने पर कान खींचकर सही बता सकते है। गलत को गलत और सही को सही कहने का साहस जिसमें होता है वो गुरु होते है। शास्त्रों में गुरु को शिष्य के प्रति चार अधिकार दिए गए है। पहला – सारना अर्थात प्रेम से समझाना
दूसरा – वारना अर्थात डांट कर समझाना,तीसरा – चोएना अर्थात उपालंब देकर समझाना,चौथा – परी चोएना अर्थात न समझने पर मारकर समझाना।पर एक सच्चा शिष्य वही होता है जो एकबार में समझ जाए। अगर हमे हमारे गुरु अच्छे लगते है किंतु फिर भी हम गुरु की नहीं मानते तो हम अच्छे शिष्य कहलाने के लायक नहीं है। प्रत्येक शिष्य को अपने गुरु की कम से कम एक आज्ञा का पालन आजीवन करना चाहिए। समुद्र चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो। वो लकड़ी के टुकड़े को नहीं डूबा सकती। शिष्य उस लोहे की कील के समान होता है जो पानी में डूब जाता है। और गुरु उस लकड़ी के टुकड़े के समान होता है जो पानी में तैरकर समुद्र को भी पार करने का साहस लगता है अर्थात पानी में नहीं डूबता। अगर शिष्य अपने जीवन रूपी लोहे को गुरु रूपी लकड़ी को सौंप दे तो वो भी बन्दे से बड़े समुद्र को पार करने के योग्य बन सकता है।उपस्थित श्रावक श्राविकाओं ने सप्त व्यसन के त्याग का संकल्प लिया। प्रवचन के अंत में सभी ने गुरु पूजा की। पूर्व विधायक रंजन दीपेंद्र साहू जी भी आज गुरु भगवंत के दर्शन हेतु आए थे।